चारण शक्ति काव्य
भक्ति री पराकाष्ठा – चारण शक्ति काव्य री सुदीर्घ अर समृद्ध परम्परा है। भांत-भांत रा डिंगळ गीतां, अनेकू प्रकार रा छंदां, दूहां-सोरठां अर चिरजावां में उपलभ्य शक्ति काव्य मांय अतीत अर वरतमान में अवतरित देवियां रा चमत्कारां, परचां-प्रवाड़ा रा सांगोपांग वरणाव मिळे। सामंती काळ में कैयनै लिखायो इतिहास में घणकरी सांपरतेख घटनावां रा जिक्र तक नी मिळे, पण वाचिक परम्परा में प्रचलित-पोषित अर संरक्षित शक्ति काव्य में वां घटनावां रौ पूरौ-पूरौ अर खरीकौ ब्यौरौ उपलब्ध है। Charan Shakti Kavya
इतिहासू दीठ सूं तो शक्ति काव्य री घणी-घणी महत्ता है इज, साग-सागै औ साहित्य राजस्थानी संस्कृति रा ऊजळा अवतारी चरित्रां री ओपती ओळख ई करावै। चारण शक्ति काव्य भक्ति री पराकाष्ठा रौ ई सांतरौ परिचय करावै। surely इण काव्य में पौराणिक देवी चरित्रां रै साथै लोकदेवी चरित्रां नै ई ठावी ठौड़ मिळी है। इन्यावी अर प्रज-लुंटक आसुरी वृत्ति री ताकतां रौ सत्यानाश कर प्रजा हितैषी-पोषी शक्तियां री थरपणां में आं अवतारी देवियां रौ महताऊ योगदान रह्यौ। प्रजा-वत्सल औड़ा अवतारी देवी-चरित्रां अर वांरा अद्भुत चमत्कारां नै उपजीव्य बणाय इण प्रदेश रा सिरजणहारां प्रभूत मात्रा में रचनावां करी।अनुसंधित्सु डॉ. प्रकाश अमरावत बडै मनोयोग सूं इतस्ततः प्रकीर्णक रूप में प्राप्य इण काव्य नै संगृहीत कर उणरौ तिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक, धार्मिक अर आध्यात्मिक दीठ सूं सरावणजोग विवेचन कीनौ।
also आज ई प्रासंगिक – चारण शक्ति काव्य, चारण कुळ में शक्ति अवतारां री जूनी परम्परा रही है। आदिशक्ति हिंगळाज रै पछै अनेक शक्तियां इण लोक में अवतरित होयनै लोकमंगळ, लोकहित रा काम किया। आपरा परचा प्रवाड़ां तूं मानखै में आस्था अर विस्वास री नींव राखी अर नारी शक्ति रै रूप में पूजनीक बणी। औ महाशक्तियां भाटियां, गौड़ा, सिसोदियां अर राठौड़ा रा राज थिर राखिया। समाज रै तायोड़े, दुखी अर लाचार मानखै रौ हरमेस साथ दियौ।
Charan Shakti Kavya
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