प्रभा खेतान के साहित्य में नारी विमर्श
यह सदी नारी-विमर्श के प्रचंड चिंतन से प्रारम्भ होती है। as a result एक स्त्री को क्या चाहिए? उनका जीवन किन भीत्तियों पर टिका होना चाहिए? उसकी अभिव्यक्ति के कौन-से द्वार होने चाहिए? उनकी आजादी के क्या अर्थ हैं? उसके अधिकार क्या हैं? उसकी प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिए ? इन प्रश्नों के मध्य घिरी आज की नारी संतुलित होना चाहती है। Prabha Khetan Sahitya Nari-Vimarsh
निस्संदेह यह तो कहा जा सकता है कि आज की नारी कमोबेश अधिक स्वतंत्र है और सुदृढ़ भी, किन्तु यह भी सत्य है कि वह अपनी धुरी पर असंतुलित है। indeed कभी वह राजनीति की चौसर पर औंधे मुंह गिरती है, तो कभी कामुकता के अपराध-भरे वातावरण में सिसकियां लेती दिखाई देती है, कहीं वह बाजार की कठपुतलीमात्र है, तो कहीं पत्थर बनती अहल्या-तमाम आजादी और अधिकारों के बावजूद। फिर भी एक आश्वस्ति-प्रभा खेतान जैसे व्यक्तित्व की बदौलत! eventually नई देहरी और उसका आलोक! हम उनकी प्रभा से आलोकित होते रहे हैं, पर क्या यह आलोक चिरकाल तक अमिट रहेगा?
also अमिट रहे या न रहे, संतुष्टि यही है कि ऐसे व्यक्तित्व भारतीय नारी के लिए प्रेरणास्पद होते हैं और उनके आत्म को जागृत करने में सहायक बनते हैं। भारतीय नारीवाद आंदोलन का मुखर पक्ष भी यही है। ‘स्व’ से शुरू की गई यात्रा ‘पर’ के विराट में समा जाती है और सृजित साहित्य के माध्यम से लम्बी दूरी तय हो जाती है।
प्रस्तुत पुस्तक में उसी समग्रता का विशद अध्ययन किया गया है, नारी मन की गहराई के साथ। all in all यह ग्रंथ नारी-विमर्श संबंधी विभिन्न मूल्यों पर अनुचिंतन के साथ न केवल प्रभा खेतान के साहित्यिक अवदान का ही मूल्यांकन करता है, अपितु भारतीय संदर्भ में नारी-विमर्श का प्रामाणिक दस्तावेज भी सिद्ध होता है। Prabha Khetan Sahitya Nari-Vimarsh
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