पंचायतीराज और दलित महिलायें : यद्यपि भारत में पंचायतें अनादिकाल से रही हैं, लेकिन वे लोकतांत्रिक पंचायते नहीं थी, उन पंचायतों में दलित महिलाओं की आवाज सुनाई नहीं पड़ती थी। 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से दलित वर्ग की महिलाओं को आरक्षण प्रदान करना, सामाजिक बदलाव की दिशा में एक क्रान्तिकारी कदम है। नयी पंचायती राज व्यवस्था ने दलित महिलाओं को विशेष अवसर प्रदान किया जिसके कारण ही आज ये महिलाएं भी सार्वजनिक जीवन में आ पाई है तथा बाड़मेर-जैसलमेर जैसे पिछड़े कहे जाने वाले जिलों में भी दलित महिलाएं जिला प्रमुख जैसे महत्वपूर्ण पदों पर निर्वाचित होकर नेतृत्व प्रदान कर रही है। देश में दलितों की संख्या 21 करोड़ से अधिक है, जो दुनिया के पांचवे बड़े राष्ट्र की आबादी से अधिक है लेकिन जमीनी हकीकत से हम मुंह नहीं मोड़ सकते। अनेक हिस्सों में आज भी उन पर अत्याचार हो रहें हैं क्योंकि वे दलित है। कहीं वे घोड़ी पर बैठ कर बारात नहीं निकाल सकते तो कहीं कुएँ या तालाब से पानी नहीं भर सकते। आम दलित आज भी विकास की राह देख रहा है। गांव की झौपड़ी में रहने वाले आम दलित के मन में आत्मविश्वास जगना चाहिए तथा हर क्षेत्र में उसे बराबरी का हक मिलना चाहिए तभी इस आरक्षण की सार्थकता सिद्ध होगी। ग्रामीण संस्कृति में एक योग्य दलित महिला प्रतिनिधि का कोई मूल्य नहीं है, एक उच्च जाति की महिला प्रधान अथवा सरपंच को जो सम्मान मिलता है, वैसा सम्मान एक दलित महिला प्रतिनिधि को नहीं दिया जाता है।
Panchayatiraj aur Dalit Mahilayen
पंचायतीराज और दलित महिलायें
Author : Vimla Arya
Language : Hindi
ISBN : 9789384406509
Edition : 2016
Publisher : RG GROUP
₹750.00
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