गोली (आचार्य चतुरसेन शास्त्री)
हिन्दी भाषा के महान उपन्यासकार तथा ऐतिहासिक कथा-लेखन के सर्वाधिक प्रसिद्ध स्तंभ आचार्य चतुरसेन शास्त्री द्वारा रचित उपन्यास ‘गोली’ उनकी सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक है। accordingly इस उपन्यास में शास्त्री जी ने राजस्थान के राजा-महाराजाओं और उनके महलों के अंदरूनी जीवन को बड़े ही रोचक, मार्मिक तथा मनोरंजन के साथ पेश किया है। उन्होंने ‘गोली’ उपन्यास के माध्यम से दासियों के संबंधों को उकेरते हुए समकालीन समाज को रेखांकित किया है। Goli – Acharya Chatursen Shastri
indeed ‘गोली’ एक बदनसीब दासी की करुण-व्यथा है जिसे जिन्दगीभर राजा की वासना का शिकार होना पड़ा, जिसकी वजह से उसके जीवनसाथी ने भी उसे छूने का साहस नहीं किया। यही इस उपन्यास का सार है। शास्त्रीजी ने ‘गोली’ उपन्यास में अपनी समर्थ भाषा शैली की वजह से अद्भुत लोकप्रियता हासिल की तथा वे जन साहित्यकार बने। यह संस्करण संपूर्ण मूल पाठ है। for this reason ‘गोली’ को हमेशा एक प्रामाणिक दस्तावेज माना जाएगा।
“मैं गोली हूं।
कलमुहें विधाता ने मुझे जो रूप दिया है,
राजा इसका दीवाना था,
प्रेमी-पतंगा था।
मैं रंगमहल की रोशनी थी।
दिन में, रात में, वह मुझे निहारता।
कभी चम्पा कहता, कभी चमेली…”
जन्मजात अभागिनी हूँ। स्त्री जाति का कलंक हूँ। स्तियों में अथम हूँ। परन्तु में निर्दोष हूँ, निध्यात हूँ। मेरा दुर्भाग्य मेरा अपना नहीं है, मेरी जाति का है, जातिपरम्परा का है। हम पैदा ही इसलिए होती हे की कलंकित जीवन व्यतीत करे जेसे में हूँ ऐसी ही मेरी माँ थी, परदादी थी, उनकी भी दादियापरदादियाँ थी। मेरी सब बहिनें ऐसी ही है…
आचार्य चतुरसेन शास्त्री
also आचार्य चतुरसेन शास्त्री हिन्दी भाषा के एक महान उपन्यासकार, कहानीकार, नाटककार और लेखक थे। उनका अधिकतर लेखन ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित है। especially उनकी प्रमुख कृतियां गोली, सोमनाथ, वयं रक्षामः, वैशाली की नगरवधू, रजकण, अक्षत, अंतस्तल, मेरी खाल की हाय, तरलाग्नि, महापुरुषों की झाँकियाँ, हमारा शहर इत्यादि हैं।
Goli – Acharya Chatursen Shastri
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