खुम्माण रासो – दलपति विजय कृत (भाग 1, 2, 3) : रासो काव्य की सुदीर्घ परम्परा की प्रबन्ध-श्रृंखला में दलपति विलय रचित ‘खुम्माण रासो’ एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में प्रतिष्ठित है, जिसमें मेवाड़ राजवंश के संस्थापक बाप्पा रावल से लेकर महाराणा संग्रामसिंह तक के शासनकाल की प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओं का काव्यमय चित्रण किया गया है। इस ग्रन्थ की प्रामाणिकता तथा अप्रामाणिकता के विषय में अनेक वर्षों से जो ऊहापोह चलते आ रहे हैं, उन सबकी प्रामाणिक परीक्षा करने के पश्चात् इसके विद्वान् लेखक और कुशल सम्पादक ने जो तथ्य पूर्ण निष्कर्ष निकाले हैं, उन्हीं के परिप्रेक्ष्य में इस ग्रंथ का प्रस्तुतीकरण और प्रकाशन किया गया है।
इस ग्रंथ में रासो काव्य की परम्परा का सामान्य विवेचन तथा अपभ्रंश एवं राजस्थानी भाषा का डिंगल और पिंगल शैली में विरचित रासो काव्यों का संक्षिप्त एवं परिचयात्मक विवरण है, जो प्रस्तुत काव्य की पृष्ठभूमि को समझने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। तदुपरांत खुम्माण रासो का सामान्य परिचय तथा इसकी ऐतिहासिक और साहित्यिक समीक्षा प्रस्तुत की गई है, जिसके अंतराल में ‘पद्मिनी चरित’ का विश्लेषण उसका एक विशिष्ट कोटि का प्रपूरक अंश हैं। खुम्माण रासो की भाषा, उसमें अभिचित्रित राजसमाज की झलक तथा अन्यरासों काव्यों के साथ उसका तुलनात्मक अध्ययन आदि अनेक विषय इस ग्रंथ की मौलिक विशेषताओं के परिचायक हैं। कुल मिलाकर यह ग्रंथ खुम्माण रासो के अध्ययन और अनुशीलन की दिशा में सर्वथैव एक नवीनतम प्रयास है, जिसमें प्रमुख विद्वानों की गवेषण का पूर्ण लाभ उठाते हुए उसे सभी दृष्टियों से मौलिक और चिंतनपरक बनाया गया है। काव्यप्रेमी पाठकों, जिज्ञासु शोधकर्ताओं तथा साहित्यिक अभिरूचि रखने वाले अध्येताओं के लिए यही ग्रंथ निश्चय ही ज्ञानवर्द्धक, संग्रहणीय एवं विचारोत्तेजक सिद्ध हो सकेगा।
Khumman Raso – Dalpati Vijay Krit (vol. 1, 2, 3)
खुम्माण रासो – दलपति विजय कृत (भाग 1, 2, 3)
Author : Krishnachandra Kshotriya, Brij Mohan Jawalia
Language : Hindi
Edition : 1999
Publisher : RG GROUP
₹1,500.00
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