भाटी वंश का गौरवमय इतिहास
राष्ट्रधर्मी यदुवंशी भाटी (वि.सं. 680/623 ई.) के वंशजों का राजस्थान में ही नहीं भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उत्तर-पश्चिम भारत की ओर एक के बाद एक अनेक राजधानियाँ स्थापित करने वाले भाटी शासकों ने विदेशी आक्रांताओं से प्रतिरोध कर जहां राष्ट्र की रक्षा करने के दायित्व का निर्वाह किया वहीं अपने क्षेत्र की भूमि को आबाद करने के साथ जन-जन की रक्षा करने और संस्कृति को बचाने में अपना बलिदान दिया। Bhati Vansh Gauravmay Itihas
श्री कृष्ण-वंशी भाटियों के इतिहास को पुराणों के सहारे धरातल से जोड़ा गया है और भटनेर, मारोठ, तन्नोट, देरावर, लोद्रवा जैसलमेर के भाटी शासकों की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों को आंकते हुए युद्ध अभियानों और रचनात्मक कार्यों पर प्रकाश डाला गया है। together with उनकी संतति से अंकुरित हुई शाखाओं के बारे में समुचित परिचय दिया है। additionally इतना ही नहीं पड़ौसी राज्यों के साथ सम्बन्ध, केन्द्रीय सत्ता (मुगल, अंग्रेज) के साथ हुए संधि-समझौतों, शासन प्रबंध, परगनां का गठन, आर्थिक-सामाजिक जीवन, भाटी ठिकाने व ठिकानेदारों की भूमिका, प्राचीन शाखाओं, प्रवासी भाटी आदि अनेक तथ्यों को प्राचीन ग्रन्थों एवं शोध यात्राओं से शिलालेखों की खोज कर इनके आधार पर प्रमाणित करने का प्रयास किया है।
also गौरवमय इतिहास के मुख्य बिन्दु – (Bhati Vansh Gauravmay Itihas)
- भाटी शासकों की एक ही पाटवी वंश धारा के शासकों की सर्वाधिक राजधानियां रहीं और वहां भव्य गढ़ों का निर्माण कराया।
- भाटी शासकों व उनके सहयोगियों ने सर्वाधिक जौहर-साके किये।
- स्वयं भाटी शासकों द्वारा निर्मित जैसलमेर पर सर्वाधिक समय तक राज्य रहा।
- in reality भाटी वंश से सर्वाधिक जातियों का प्रादुर्भाव हुआ जो सम्पूर्ण देश-विदेश में फैली हुई हैं।
- भाटी कला और साहित्य अनुरागी रहने के साथ ही उनका राष्ट्रीय धरोहर के संरक्षण में विशेष योगदान रहा।
- भाटी ठिकानेदारों की राजस्थान के अधिकांश राज्यों में महत्ती भूमिका रही।
- presently आधुनिक युग में भाटी परमवीर, महावीरचक्र, पड्डश्री, पड्डभूषण से सुशोभित होने के साथ ही साहित्य इतिहास सृजन में विशेष ख्याति प्राप्त कर गौरव-धाराओं को अग्रसर करने में तत्पर है।
accordingly द्वितीय भाग में भाटियों की प्रमुख 74 शाखाओं, मारवाड़ भाटियों के 94 ठिकानों, शासन प्रबन्ध और युद्ध अभियानों में उनकी भूमिका, ठिकानों की रेख तुलनात्मक अध्ययन, अवशिष्ट जागीरें (43), भोमिया व जूने जागीरदार (136), बीकानेर के भाटी ठिकाने (44) तथा मेवाड़, जयपुर, सीतामऊ के ठिकाने (21) कुल मिलाकर जैसलमेर सहित 200 ठिकानों के बारे में आधारभूत स्रोतों और शोध यात्राएं शिलालेखों की खोज कर इतिहास के नवीन तथ्यों को उजागर किया है। इसके साथ ही कोट-कोटड़ियों, भवनों की फोटुएं अंकित करने से सजीव इतिहास का प्रकटीकरण हुआ है। so इस प्रकार यह एक इतिहास के दुर्ग का निर्माण हो गया है जिसके कलात्मक झरोखों से इतिहास, साहित्य और संस्कृति की तेजस्वी किरणें सुदूर प्रान्तों को प्रकाशमान करती रहेंगी।
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