वेदान्त दर्शन में ब्रह्म : वेदान्त दर्शन के उत्तरकाल में ब्रह्म के जिस महान स्वरूप की कल्पना की गई है, उसका ऋग्वेद में याज्ञिक कर्म काण्ड के प्रभाव एवं सम्पर्क के कारण पूर्णतः सूत्रपात नहीं हो पाया था, केवल केवल शतपथ ब्राह्मण में ब्रह्म की कल्पना ने वह महत्त्वपूर्ण स्थान ग्रहण किया है, जिस पर ‘ब्रह्म’ की अवधारणा प्रतिष्ठित है। ब्रह्म एक महान शक्ति है। शतपथ के अनुसार “आदिकाल में यह सारा विश्व ब्रह्म के रूप में था, ब्रह्म ने देवताओं का सृजन किया और तत्पश्चात् उनको विश्व में आरुढ़ किया, अग्नि को पृथ्वी पर स्थापित किया, वायु को वातावरण में और सूर्य को अन्तरिक्ष में स्थान दिया, तब स्वयं ब्रह्म दूसरे लोक में गया। परलोक में स्थापित होकर ब्रह्म ने सोचा कि मैं ब्रह्माण्ड में किस प्रकार पुनः प्रवेश कर सकता हूँ ? तब फिर ब्रह्म ने इस विश्व में दो स्वरूपों में प्रवेश किया। नाम व रूप, जिस किसी वस्तु की संज्ञा है, वह नाम है और जो संज्ञाहीन है, वह रूप। जो इन दो शक्तियों को पहचानता है वह स्वयं महाशक्तिमान अथवा ब्रह्म स्वरूप हो जाता है।
Vedant Darshan Mein Brahma
वेदान्त दर्शन में ब्रह्म
Author : Harish Babu Upadhyaya
Language : Hindi
Edition : 2018
ISBN : 978819004253X
Publisher : RAJASTHANI GRANTHAGAR
₹219.00
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