Rajasthani Sahitya ka Aadikal

राजस्थानी साहित्य का आदिकाल
Language: Hindi

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राजस्थानी साहित्य का आदिकाल : राजस्थानी साहित्य के आदिकाल का प्रारम्भ 9 वीं सताब्दी से माना जाता है और उद्योतन सूरि कृत ‘कवलयमाला कथा (सं. 835) में उल्लिखित मरू भाषा को प्रमाण स्वरूप स्वीकार किया गया है। यद्यपि 13 वीं शताब्दी पहले का बहुत कम साहित्य हमें उपलब्ध होता है। 13 वीं शताब्दी के बाद की अनेक रचनाएं इस भाषा में उपलब्ध होती है पर उनमें भी जैन साहित्य की ही प्रधानता है। इस काल के साहित्य को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है- 1. जैन साहित्य, 2. जैनेतर साहित्य (चारण शैली का साहित्य, भक्ति साहित्य), 3. लोक-साहित्य। इस काल का अधिकांश साहित्य दोहा, सोरठाा, गाहा, गीत, झूलणा, चौपाई आदि छन्दों में छन्दोबद्ध हुआ है। जैन लेखकों द्वारा इस काल में बहुत सा गद्य लिखा गया। मौलिक रचनाओं के अतिरिक्त अनेक महत्वपूर्ण टीकांए और अनुवाद भी इस काल में हुए है। स्वं. डा. नारायणसिंह भाटी द्वारा सम्पादित परम्परा के इस विशेषांक में राजस्थानी भाष्षा के उद्भव, काल निर्धारण व आदिकालीन साहित्य व तत्कालीन साहित्यिक विधाओं पर विभिन्न विद्वानों द्वारा 11 विवेचनात्मक व परिचयात्मक निबन्ध दिये गये है, जो उत्यधिक महत्वपूर्ण है निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि यह सामग्री राजस्थानी साहित्य के इतिहास की जानकारी के अलावा राष्ष्ट्र भाष्षा हिन्दी और अन्यान्य सम्बन्धित भाषाओं के प्राचीन साहित्य के अध्ययन में भी उपयोगी सिद्व होगी।

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