लोक सांस्कृतिक परम्परा : एक अनुशीलन : ये आलेख जहाँ एक ओर प्रादेशिक विशिष्ष्टताओं पर प्रकाश डालते है तो दूसरी ओर भारतीय सांस्कृतिक पक्षों को भली भाँती उजागर करते है। इनके माध्यम से नृतत्व शास्त्रीय, समाजशास्त्रीय, मनोविज्ञान संबंधी प्रभूत सामग्री विवेचित-विश्लेष्षित की गई है। इतना ही नहीं लोकपचारों तथा कथानक रूढि़यों पर भी वैज्ञानिक दृष्ष्टिकोण से सारगर्भित विचार किया गया है। सभी अंचलों के लोक-साहित्य की विविध विधाओं से चयनित एवं उद्धृत मूल सामग्री से इस संकलन की भाष्षा-शास्त्रीय उपादेयता भी बढ़ी है। विलुप्त हो रही कुछेक लोक कलाओं पर आधिकारिक सामग्री भी कुछ आलेखों में प्रस्तुत की गई है। लोक मानस की आध्याम्त्मिक आस्थाओ, आदिवासियों एवं वनवासी जातियों में प्रचलित लोक-विश्वासों तथा मान्यताओं के प्रकटीकरण से इस संकलन की महत्ता में वृद्वि हुई है। वर्तमान भोतिकवाद तथा उपभोक्तवाद जन्य उपसंस्कृति के प्रदूष्षण से मानवीय गुणों का हास हो रहा है, परिवार बिखर रहे है, घोर वैयक्तिकता से समाज में तनाव, घुटन, कुंठा और छटपटाहट ही जैसे हमारी नियति हो गई है। चारो ओैर व्याप्त होती हुई साम्प्रदायिकता, प्रादेशिकता तथा वर्ग संघष्र्ष के अभिशाप से संत्रस्त मानवीय अस्मिता की रक्षा यदि संभव है तो वह लोक-संस्कृति के संरक्षण से ही हो सकती है। लोक-संस्कृति ही किसी भी राष्ष्ट्र् की आत्मा होती है।

Lok Saanskritik Parampara : Ek Anushilan
लोक सांस्कृतिक परम्परा : एक अनुशीलन
Mahipal Singh Rathore
Language: Hindi
ISBN : 9789385593000
Edition: 2017
Publisher: RG GROUP
₹400.00
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