बौद्ध धर्म दर्शन, संस्कृति और कला : बौद्ध धर्म-दर्शन ने भारतीय चिन्तन परम्परा, कला एवं संस्कृति को शताब्दियों तक सतत प्रभावित किया है। इस परम्परा के अध्ययन के बिना भारतीय संस्कृति का ज्ञान अपूर्ण ही रहता है। सम्प्रति अनेक भाषाओं में हो रहे वैश्विक लेखन में भी बौद्ध-चिन्तन का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। बौद्ध धर्म-दर्शन आधुनिक युग में भी उतना ही उपयोगी है, जितना प्राचीन काल में रहा। दुःख-मुक्ति, तनाव-विमुक्ति, चित्तशुद्धि एवं विश्वशान्ति की दृष्टि से यह व्यक्ति, समाज एवं विश्व सबके लिए आज भी पूर्णतः उपादेय है।
प्रस्तुत पुस्तक में बौद्ध धर्म-दर्शन, संस्कृति और कला से सम्बद्ध विभिन्न पक्षों पर विद्वानों के आलेख प्रकाशित हैं। त्रिपिटकों के अध्ययन की उपयोगिता, अनात्मवाद, शून्यवाद, प्रतीत्यसमुत्पाद, क्षणिकवाद, निर्विकल्पता, शमथ, विपश्यना, मानव-मनोविज्ञान, बह्यार्थ अस्तित्ववाद, पंचशील, कर्म की अवधारणा, ब्रह्मविहार आदि दार्शनिक विषयों के साथ इस पुस्तक में सामाजिक न्याय, दलित-उत्थान, साम्प्रदायिक सद्भाव, सामाजिक सामरस्य, नारी-अभ्युदय आदि सामाजिक विषय भी चर्चित हुए हैं। सांस्कृतिक दृष्टि से प्रजातान्त्रिक मूल्यों पर भी विचार हुआ है। बुद्धघोष, अश्वघोष आदि की रचनाओं के आधार पर शान्ति एवं जीवन मूल्य के सूत्र खोजे गए हैं। बौद्ध धर्म एवं कला का घनिष्ठ सम्बन्ध भी उजागर हुआ है। स्थापत्यकला, चित्रकला, मूर्तिकला आदि के विकास में बौद्धधर्म का योगदान रहा है। जयशंकर प्रसाद जैसे हिन्दी साहित्यकार भी बौद्ध धर्म से प्रभावित हैं, यह इस पुस्तक के आलेखों से पुष्टि होती है।
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