राजपूताना : जन जागरण से एकीकरण : 19वीं सदी के प्रारम्भ में मराठा आक्रमण से भयभीत राजपूताना के नरेशों ने ब्रिटिश सरकार से संधियां कर ब्रिटिश शक्ति का संरक्षण प्राप्त किया। नरेशों को इससे आंतरिक विद्रोह और बाह्य संकट से तो मुक्ति मिल गयी लेकिन इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि देशी राजाओं का अब अपनी प्रजा से सम्पर्क नहीं रहा और वे राज्य की आय को अपने मनोरंजन, शिकार और विलासी जीवन पर लुटाने लगे। जागीरों में स्थिति और भी भयावह थी, जहाँ की प्रजा जागीरदार, नरेश और ब्रिटिश सरकार, इन तीनों की दास थी। सदियों से नरेशों को जो सम्मान प्राप्त था। वह स्वयं उनके कार्यों से समाप्त हो गया। 20वीं सदी के प्रारम्भ से विभिन्न राज्यों के प्रबुद्ध व्यक्तियों ने जनअधिकारों की प्राप्ति के लिये प्रयास किये। राज्यों में विरोध करने पर कठोर दमन होने से उन्हें ब्रिटिश प्रान्तों में शासन सुधारों के लिए प्रचार करना पड़ा। द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति तक देशी नरेश ब्रिटिश सरकार के प्रति राजभक्ति प्रदर्शित करते रहे लेकिन तेजी से चले घटनाक्रम में निरंकुश राजतंत्रीय व्यवस्था समाप्त हो गयी। इस पुस्तक में विभिन्न राज्यों में जन जागृति के लिए संघर्ष करने वाले प्रमुख व्यक्तियों की भूमिका का वर्णन किया गया है।
Rajputana : Jan Jagaran Se Ekikaran
राजपूताना : जन जागरण से एकीकरण
Author : F.K. Kapil
Language : Hindi
Edition : 2018
ISBN : 9789384168315
Publisher : RAJASTHANI GRANTHAGAR
₹319.00
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