प्रतिहार राजपूतों का इतिहास (मण्डोर से नागौद सातवीं सदी से बीसवीं सदी तक) : हरिचन्द्र से पहले अनेक प्रतिहार शाखाएँ विद्यमान थीं। हरिचन्द्र की दो पत्नियाँ थीं – एक ब्राह्मण और दूसरी क्षत्रिय। हरिचन्द्र के मन में सत्ता प्राप्ति की महत्वाकांक्षा न थी। किन्तु उसकी क्षत्रिय रानी से उत्पन्न पुत्र सत्ता के आकर्षण से मुक्त न थे। अतः उन्होंने मण्डोर के चारों ओर से मातृपक्ष की सहायता से एक छोटे राज्यकी स्थापना कर ली। कालान्तर में इस शाखा ने उज्जैन होते हुए कन्नौज पर अधिकार कर लिया । इस प्रकार प्रतिहार उत्तर भारत की सार्वभौम शक्ति बनने में सफल हुए। डॉ. पुरी ने अपने ग्रन्थ हिस्ट्री ऑफ गर्जर प्रतिहाराज’ में यशपाल प्रतिहार तक के इतिहास का वर्णन किया है । किन्तु साम्राज्यवादी प्रतिहारों के पतन के पश्चात् उनकी स्थानीय शाखा पर कोई प्रकाश नहीं डाला गया।
डॉ. विशुद्धानन्द पाठक का उत्तर भारत का राजनीतिक इतिहास (1973)’ एक विद्वतापूर्ण ग्रंथ है। इसके पांचवे अध्याय में गुर्जर-प्रतिहारों के उद्भव और विकास के साथ-साथ उसके अधीन कन्नौज साम्राज्य के इतिहास का विस्तृत विवेचन है । इसमें गुर्जर-प्रतिहारों की महान् उपलब्धियों और उनकी सत्ता के क्रमिक पतन का विशेष अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। किन्तु इस ग्रन्थ में भी प्रतिहारों की साम्राज्यवादी शाखा के पतन के पश्चात् विकसित स्थानीय शाखाओं की पूर्णतया उपेक्षा की गई है।इस प्रकार उपर्युक्त सभी लेखकों ने प्रतिहारों की साम्राज्यवादी शाखा के पतन के पश्चात् अपना अध्ययन समाप्त कर दिया है। अतः एक ऐसे ग्रंथ की अत्यन्तआवश्यकता थी जिसमें प्रतिहारों के कन्नौज के पतन के पश्चात् का इतिहास लिखा जावे । इसी तथ्य को ध्यान में रखकर प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना की गई है।
Pratihar Rajputon ka Itihas
प्रतिहार राजपूतों का इतिहास (मण्डोर से नागौद सातवीं सदी से बीसवीं सदी तक)
Author : Ram Lakhan Singh
Language : Hindi
ISBN : N/A
Edition : 2015
Publisher : Other
₹319.00
ठाकुर कुशालसिंह प्रतिहार –
बहुत ही अच्छा अनुभव रहा