कुल चारण कीरत तणा, बढ बढ किया बखांण।
चारण क्षत्रिय संग री, पाछी हुई पिछांण।।1।।
जस गाहक जस्सोल री, धरती रा गुण धाम।
मंडिया म्हारां हिय मंही, ‘नाहर’ थारै नाम।।2।।
मोदभर्या ममता भर्या, बड़ा हिया रा बोला।
मोनै तो बिन कुंण लिखै, आखर इसा अमोल।।3।।
ईश्वरदान आसीया मंगटिया (मेवाड) रा कहिया आज तो संस्कृत री वा उक्ति याद आवै ‘तेहिनो दिवसा गताः’ अर्थात् वे दिन बीत गया। पण अवतार चरित्र रौ कथन-‘निरबीज भूमि कबहू न होय’ मुजब सम्चक्र अरहट री घड़लिया प्रमांण चालतौ रै, ‘चक्रवत् परिवर्तन्ते’ नीति-वाक्य है। वरतमांन में ठा. नाहर सिंह जी जसोल रौ नाम संस्कारी क्षत्रिय, विख्यात विद्वान अर नेक इन्सान रै रूप में आखै राजस्थान अर धाट-प्रदेस तांई घणौ चावौ है। वे अनेक पुस्तकां रा लेखक इतिहास अर संस्कृति रा जाणकार, ‘सन्तोष सो सुख नांही, कीरति सो गहनौ’ लोकोक्ति नै अंगीकृत करण वाळा वंदनीय व्यक्त्वि रा धणी है। साहित्य जगत में ‘चारणों री बातां’ प्रथम पुस्तक है, जिणमें प्रामाणिक अर प्रेरक सामग्री प्रकाशित हुई। सौराष्ष्ट (सोरठ) देस सारू औ जूनी दूहो घणौ प्राणवंत है-
सोरठ बिना न नीपजै, रूड़ा च्यार रतन्न।।
‘चारणों री बातां’ रा लाखीणा लेखक ठा. नाहरसिंह जी जसोल पुस्तक रै प्रारंभ में ‘दो आखर’ शीर्षक सूं ‘राजपूत अर चारणों से सम्बन्ध’ काळजै री कोर सूं प्रगट किया, वे ‘दो आखर’ तौ ‘अमर-आखर’ गण गया। इण भांत री शोध अर प्रबोध री इतिहास-सिद्ध सामग्री आजादी रै बाद दूजौ कोई नर-नाहर लिखण वाळौ निजर नीं आवै।
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