सतरंगी संस्कृति (राजस्थानी निबंध संग्रै)
accordingly ‘सतरंगी संस्कृति’ सिरैनाम वाळो ओ निबंध संग्रै सुधी समालोचक संग्राम सिंह सोढा रै ऊंडै अनुभव, गहन चिंतन, सतत स्वाध्याय अर सोझीवान दीठ सूं गूंथीज्योड़ो इसो गुण – गजरो जिणमें न्यारी-न्यारी भांत रा 13 निकेवळा सुमनां री सोरम सुधी – पाठक रै अंतस में आणंद उपजावै। आपरी मायड़ भाषा सं अणहद हेत राखणियां कवि, निबंधकार अर समालोचक श्री सोढा बडी खामचाई सूं भाषा, साहित्य, संस्कृति, लोक, परंपरा, विकास, वैभव अर अणगिण उदाहरणां सूं आपरी बात नै पुख्ताऊ अंजाम देवै। Satrangi Sanskriti
निबंध-संग्रै री विषै सामग्री इण बात री साख भरै कै रचनाकार आपरै लोक अर साहित्य री वाचिक परंपरा सूं गैरो जुड़ाव राखै। निबंधकार आपरी हरेक थापना नैं किणी न किणी, लोकप्रसिद्ध कैबत या दूहै सूं प्रमाणित करै। श्री सोढा आछी तरियां जाणै कै राजस्थानी साहित्यकारां उत्कृष्ट रै अभिनंदन अर निकृष्ट रै निंदण री आखड़ी पाळी है। इण साहित्य रौ प्रयोजन अकदम साफ रैयो है कै जको स्वतंत्रता से पुजारी है, स्वाभिमानी है, नीति- न्याय रो पखधर है, अनीति अर अन्याय रो विरोधी धरम रो रखवाळो है, उणरी सोभा सवाई हुणी चाईजै।
(राजस्थानी निबंध संग्रै) Satrangi Sanskriti
रजवट नैं सतवट माथै राखण सारू गौरवशाली इतिहास अर चरित नायकां रै पुरखां री अंजस जोग अखियातां री बातां बतावतां अठै रै सिरजणकारां राव- राजवियां रै डगमगतै पगां र सुस्तावती रगां में साहस रो संचार करावण रो काम कियो है। following आज हालांकै परिस्थितियां रो बदळाव साहित्य री धारा में भी बदलाव रो हामी है, बावजूद इणरै इतियासू गौरव रो गान आपांनैं आपणै विरुद रो भान करावै। आपणै मन री हीन भावना नैं हटावै अर बगत री बेईमानी सूं दो-दो हाथ करण री हूंस जगावै। इण तथ अर सत नैं जाणतां निबंधकार सुधी पाठक नैं पग-पग पर चेतावणी देवतां गुण-गाहक बणावण सारू खेचळ करतो दीखै।
also इस संग्रै रो हरेक निबंध आपरै सिरैनाम री सारथकता नैं साबित करतो पाठक रै ज्ञान, विवेक अर चिंतण रै दायरै नैं विस्तार देवै। अक-ओक निबंध री सामग्री अर बात-बात में पूर्वाचार्यां अर कवेसरां रै काव्य रा दाखला निबंधकार री गंभीरता अर बहुज्ञता नै सिद्ध करै। निबंधकार राजस्थानी लोकजीवण अर जीवणमूल्यां रै प्रबळ पखां नैं उभारतां आपण अतीत रै गौरव रोगान करै तो वरतमान राज अर समाज री दसा – दिसा नैं ओपतै ढंग सूं अभिव्यक्त करतां भविस नैं सुधारण रा जाझा जतन करतो निगै आवै। दस करोड़ कंठां री वाणी मायड़भाषा राजस्थानी नैं संवैधानिक मानता नीं मिलण सूं निबंधकार से अंतस निरास है। Satrangi Sanskriti
rajasthani essay collection
click >> अन्य सम्बन्धित पुस्तकें
click >> YouTube कहानियाँ
Reviews
There are no reviews yet.