राव जोधा पूर्व मारवाड़ का इतिहास : मौर्य नरेश चन्द्रगुप्त और उसके पौत्र अशोक के समय मारवाड़ भी मौर्य साम्राज्य का एक अंग रहा था। महर्षि पतंजलि ने महाभाष्य में लिखा है, ‘अरुण द्यवनः साकेतम्, अरुण द्यवनः मध्यमिकाम।।’ अर्थात् साकेतम् (अयोध्या) व मध्यमिकाम (नगरी-चितौड़) तक यवन पहुंच चुके थे। अतः संभव है कि मरु प्रदेश भी निश्चित रूप से यवनों द्वारा जीत लिया गया होगा। इसी तरह गार्गी संहिता एवं मालविकग्निमित्रम् से ज्ञात होता है कि यवनों को पुष्यमित्र के पौत्र वसुमित्र ने परास्त कर भगा दिया था। अतः मरु प्रदेश पर शुंगों का प्रभुत्व भी रहा था। कुषाणवंशी कनिष्क ने अपना राज्य राजपूताना, सिंध, खोतान यारकन्द तक विस्तृत कर रखा था। राजस्थान में कुषाण वंशजों के सिक्के मिलना यह सिद्ध करता है कि मरुप्रदेश भी इस प्रतापी राजवंश के साम्राज्य में सम्मिलित हो गया था। शक जाति के पश्चिमी क्षत्रपों में अंतिम क्षत्रप राज रुद्रसिंह को मारकर गुप्तवंशी चन्द्रगुप्त द्वितीय ने उसका सारा हस्तगत किया था।
हर्ष की मृत्यु के पश्चात् प्रतिहार नागभट्ट द्वितीय ने कन्नौज पर अपना अधिकार कर लिया। बुचकला गांव से प्राप्त शिलालेख जो कि वि.सं. 872 का है, उससे पता चलता है कि यह प्रदेश नागभट्ट द्वितीय के साम्राज्य का ही एक अंग था। इसी तरह प्रतिहार शासक कक्कूक का शिलालेख (वि.सं. 918), कक्कूक के भइ बाऊक का शिलालेख (वि.सं. 894), प्रतिहार दुलहराज पुत्र अर्जुन का शिलालेख (वि.सं. 993) आदि मिलते हैं। जिससे मारवाड़ में इन प्रतिहारों का 10वीं शताब्दी तक रहने के प्रमाण मिलते हैं।
मारवाड़ के कुछ हिस्सों पर सोलंकी वंश का भी अधिकार रहा था। सिद्धराज (जयसिंह), कुमारपाल एवं भीमदेव द्वितीय के शिलालेख का ताम्रपत्र किराडू, पाली, भाटूंड, नाडोल, बाली, सांचोर, नाणा, नारलाई, जालोर आदि में मिलना इसके प्रमाण है।
चौहानों का मूल राज्य अहिच्छत्रपुर (नागौर) में था। वहां चलकर इन्होंने शाकम्भरी (वर्तमान सांभर) को अपनी राजधानी बनाया। शाकम्भरी के चौहानों में लक्ष्मण ने नाडोल पर अधिकार किया था। इसी तरह सहजपाल का खण्डित अभिलेख जो कि मण्डोर से प्राप्त हुआ था। इससे सहजपाल के समय चौहानों का मण्डोर पर अधिकार होने की पुष्टि होती है।
Rao Jodha Purva Marwar Ka Itihas
राव जोधा पूर्व मारवाड़ का इतिहास
Author : Mahendra Singh Nagar
Language : Hindi
Edition : 2019
ISBN : N/A
Publisher : RG GROUP
₹319.00
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