मेवाड़ के ठिकानों का इतिहास : मेवाड़ के महाराणाओं ने शासन के प्रति निष्ठा, जागीरदार की योग्यता एवं महत्वपूर्ण सेवाओं के बदले क्षेत्र विशेष में ठिकाने आवण्टित किए। मेवाड़ की अखण्डता एवं सार्वभौमिकता को बनाए रखने में उनकी महती भूमिका रही।
महाराणा रायमल (473-509 ई.) ने मेवाड़ पर होने वाले बाह्य आक्रमणों से रक्षार्थ हेतु मारवाड़ व मेवाड़ के मध्य प्राकृतिक सीमा निर्धारित करने वाले सामरिक एवं व्यापारिक महत्व के मार्ग पर मेवाड़ की सीमा चौकी के रूप में झीलवाड़ा एवं रूपनगर के ठिकाने क्रमश: सोलंकी ठाकुर एवं सामंतसिंह को प्रदान किए। उनकी महत्वपूर्ण सेवाओं के कारण पूरे रियासतकाल में ये ठिकाने उनके वंशजों के पास ही रहे। मेवाड़ की रक्षार्थ लड़े गए युद्धों में अविस्मरणीय भूमिका निवर्हन करने में सावंतसिंह, भैरोंसिंह, वीरमदेव, दलपत सोलंकी एवं बीका सोलंकी के नाम उल्लेखनीय हैं।
कानून व्यवस्था, कृषि कार्य को प्रोत्साहित करने, देवप्रासादों का निर्माण, तालाबों एवं स्मारकों का निर्माण जैसे जनकल्याण कार्यों को डॉ. सोलंकी ने अपनी पुस्तक में विस्तार से प्रमाणिक मूल स्रोतों के आधार पर लिखा है। प्रकाशित पुस्तक में ऐसे अनेक अनछुए पहलुओं को उद्घाटित किया गया है, जो रियासतकालीन एकीकृत मेवाड़ के इतिहास लेखन के लिए उपयोगी है।
Mewar ke Thikanon ka Itihas
मेवाड़ के ठिकानों का इतिहास
Author : Govind Singh Solanki
Language : Hindi
ISBN : 9789387297388
Edition : 2018
Publisher : RG GROUP
₹359.00
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