Kshatriya Samaj Ki Kuldeviyan

क्षत्रिय समाज की कुलदेवियां
Author : Dr. Raghunath Prasad Tiwadi ‘Umang’
Language : Hindi
Edition : 2020
ISBN : 9789387297845
Publisher : Rajasthani Granthagar

Original price was: ₹300.00.Current price is: ₹239.00.

क्षत्रिय समाज की कुलदेवियां

ईश्वर के प्रति प्रेम अथवा भक्ति के स्वरूप का भाषा के द्वारा बखान करना बड़ा कठिन मार्ग है। उपासना एवं पूजा ऐसे ही तत्त्व की हो सकती है, जिसे परम रूप में पूर्ण समझा जा सके। ईश्वर विनम्र है, so यही कारण है कि भक्त अपने को सर्वथा ईश्वर की दया के ऊपर छोड़ देता है। Kshatriya Samaj Ki Kuldeviyan

नारद सूत्र में भक्ति के विभिन्न प्रकार मिलते हैं। सच्ची भक्ति निःस्वार्थ आचरण के द्वारा प्रकट होती है। भक्त की श्रद्धा एवं विश्वास भक्ति का मूल आधार कहा जा सकता है। therefore इसी रूप में कुलदेवियों की परम्परागत पूजा-अर्चना अलग-अलग वंशधरों में पूजीत हो रही है, जो कुल की रक्षा करने का दायित्व ग्रहण करती है।

क्षत्रिय-संहिता तथा ब्राह्मण ग्रंथों में ‘क्षत्रिय’ समाज का एक प्रमुख अंग माना। गया है, जो पुरोहित, प्रजा एवं सेवक (ब्राह्मण, वैश्य एवं शूद्र) से भिन्न है। राजन्य क्षत्रिय का पूर्ववर्ती शब्द है, किन्तु दोनों की व्युत्पत्ति एक है, (राजा सम्बन्धी अथवा राजकुल का)। वैदिक साहित्य में क्षत्रिय का प्रारम्भिक प्रयोग राज्याधिकारी या देवी। अधिकारी के अर्थ में हुआ है। पुरुषसूक्त (ऋ. वे. 10.90) के अनुसार राजन्य (क्षत्रिय)। विराट् पुरुष के बाहुओं से उत्पन्न हुआ है। क्षत्रिय एवं ब्राह्मणों (ब्रह्म-क्षत्र) का सम्बन्ध सबसे समीपवर्ती था। वे एक दूसरे। पर भरोसा रखते तथा एक दूसरे का आदर करते थे। एक के बिना दूसरे का काम नहीं चलता था। ऋषिजन राजाओं को अनुचित आचरण पर अपने प्रभाव से राज्यच्युत तक कर देते थे।

प्रस्तुत पुस्तक में क्षत्रिय वंश की कुलदेवियों पर प्रकाश डाला गया है। देवी से प्राप्त ज्ञान अर्जन, उनके प्रति रीति-रिवाज एवं परम्पराओं का बोध कराने में यह ग्रन्थ उपयोगी सिद्ध होगा। surely कुलदेवी किसी भी वंश की प्रथम रक्षक देवी होती है यह उस वंश की प्रथम पूजा के मूल अधिकारी होते है।

Mata (Kuldevi) Itihas-Chamatkar-Aarti-Chalisa-Geet-Dohe (Duhe)-Stuti-Mantra

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