कायम खाँ रासा : जान कवि द्वारा इस ग्रंथ की रचना करने का उद्देश्य कायमखां के वंश की श्रेष्ठता दर्शाना रहा। अतः इस वंश के वीरत्व-कार्यों का प्रमुखता के साथ वर्णन किया गया है। वैसे भी रासो-काव्य युद्ध-प्रधान हुआ करते हैं और इसमें भी विभिन्न युद्धों का वर्णन है। दोहा प्रधान इस काव्य में कवि ने युद्धानुकूल छंदों के प्रयोग भी बीच-बीच में किए हैं और युद्ध विषयक रूढियों का भी पालन किया है। अनेक युद्धों का वर्णन होने से पुनरूक्तियों का प्रयोग स्वाभाविक रूप से हुआ है। वीर रस प्रधान होने से शैली के साथ-साथ शब्दों और अलंकारों का प्रयोग भी उसी के अनुकूल हुआ है। कवि ने इस काव्य में उपमा अलंकार का उपयोग प्रचुरता के साथ किया है और कतिपय उपमाएं एकाधिक बाद प्रयुक्त की गई हैं। सरल भाषा और छंदों के कुशलतापूर्वक निर्वाह के कारण यह काव्य सहज रूप से आकर्षक बन पड़ा है। वीर रस प्रधान काव्य होते हुए भी कवि ने बीच-बीच में यथा-प्रसंग अन्य रसों की छटा भी दिखलाने का प्रयास किया है। अतः इस काव्य में अनेक ऐसे छंद भी देखने को मिलते हैं, जो कवि की काव्य-प्रतिभा को दर्शाते है।
Kayam Khan Rasa
कायम खाँ रासा
Author : Dr. Ratanlal Mishra
Language : Hindi
Edition : 2007
Publisher : Other
₹300.00
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