जोेधपुर का ऐतिहासिक दुर्ग : मेहरानगढ़ : यह दुर्ग फरिश्तों और देवताओं द्वारा निर्मित लगता है। पूनम की रात में दूधिया चाँदनी में नहाया हुआ यह दुर्ग पहाड़ी पर बैठे हुए किसी जटाधारी ऋषि के समान पद्मासन की मुद्रा में आसीन तपस्वी के समान शांत और निर्भीक रूप में नजर आता है। अमावस की काली रात में बिजली को रोशनी में दुर्ग के महल ऐसे नजर आते हैं, मानों ऊंची पहाड़ी पर ज्वालामुखी के मुख से जलता लावा फूटने को है। दस मील दूर पाली या जयपुर मार्ग से रेलगाड़ी या बस से बैठे यात्रियों को यह दुर्ग पहाड़ी पर रखे चमचमाते कोहिनूर हीरे के समान देदीप्यमान नजर आता है। मेहरानगढ़ दुर्ग आज जोधपुर की पहचान है और शौर्यपूर्ण मारवाड़ के गौरवपूर्ण इतिहास का कीर्ति-स्तम्भ भी है, जो अजेय योद्धा के समान सुदृढ़ता से चिड़ियाटूंक पहाड़ी पर अडिगतापूर्वक स्थिर है। – रुडयार्ड किस्लिंग
भारत के उपराष्ट्रपति श्री एम. हिदायतुल्ला 26 अक्टूबर, 1980 को जब मेहरानगढ़ दुर्ग देखने आये, तो उनके मुँह से अनायास ही निकल पड़ा-
तेरी हर अज्म मुस्कराहट से, एक नई नस्ल मुस्कराती है।
मैं अपने उद्गार शब्दों में व्यक्त करने में असमर्थ हूँ कि यह दुर्ग मुझे कैसा लगा? बचपन में मैं कल्पनाओं में सोचता था कि दुर्ग ऐसा होगा या वैसा होगा। एक धुंधली-सी तस्वीर किले की मेरे जहन में बचपन से रही। जवान होने के बाद भी कई गढ़, दुर्ग, किले, राजप्रासाद मैंने देखे, पर किसी में वह स्वप्नों का दुर्ग मुझे नजर नहीं आया, परन्तु आज यहाँ आकर मेरे बचपन की कल्पनाओं के दुर्ग को साकार इस पथरीले दुर्ग ने कर दिया। – आर. के. लक्ष्मण
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