राजस्थान के संगीतज्ञ एवं उनकी साधना : मुगल सत्ता के क्रमिक हा्स के साथ ही उसके आश्रित कलाकारों, संगीतज्ञों और नर्तकों ने क्षीण होते केंद्र को छोड़कर मध्यप्रदेश और राजस्थान की पूर्व-रियासतों में आश्रय ढूँढना प्रारम्भ किया। यहाँ के शासकों ने भी इन संगीतज्ञों के साथ कला की समृद्धि का मार्ग प्रशस्त किया। उदयपुर, महाराणा कुम्भा के समय से ही साहित्य-संगीत को समर्पित रियासत थी, वह और अधिक समृद्ध हुई। इन रियासतों में आश्रय पाये कलाकारों की शिष्य-परम्परा के प्रतिनिधियों ने अनवरत स्वर-साधना की। इनसे स्थानीय प्रतिभाएँ भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकीं। वल्लभ-संप्रदाय और नाथ-संप्रदाय के मंदिरों की कीर्तन-परम्परा के गायक-वादन भी इस दरबारी संगीत के स्वरूप की साधना में स्वयं को ढालते रहे।
स्वतंत्रता के सूर्योदय के साथ नव-नवीन संस्थाओं के साथ राज्य सरकार व संगीत नाटक अकादमी ने कला के संरक्षण और उन्नयन में अपनी महती भूमिका निभायी है। भारत के अन्य भू-भागों से राजस्थान में आकर विगत 7-8 दशकों में बसे संगीतज्ञों का भी इस प्रदेश की संगीत-साधना में एक बहुत बड़ा योगदान है। संगीत के इतिहास, शास्त्र व प्रायोगिक पक्ष के विद्वान् लेखक की यह पुस्तक विगत 2-3 शताब्दियों में हुए संगीतज्ञों के साथ-साथ कतिपय वर्तमान कलाकारों की साधना का रोचक विवरण प्रस्तुत करती है। राजस्थान के संगीत के विविध पक्षों तथा कला-प्रस्तुति की इन पृष्ठों में की गयी चर्चा निश्चय ही इतिहास, शास्त्र व कला के अध्येताओं/साधकों को अपने अध्यवसाय में नवीन ऊर्जा के साथ प्रेरित करेगी। लेखक व प्रकाशक दोनों ही इस स्तुत्य प्रयास के लिये प्रशंसा के पात्र हैं।
Rajasthan ke Sangitagya aur unki Sadhana
राजस्थान के संगीतज्ञ एवं उनकी साधना
Author : Datta Kshirsagar
Language : Hindi
Edition : 2015
Publisher : RG GROUP
₹219.00
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