अल्फ़ाज़ : प्रस्तुत संकलन ‘अल्फाज़’ उर्दू या किसी भी भाषा में मेरी पहली कोशिश है। ये संकलन तीन भागों में बांटा गया है – नज़्म, गुफ्तगू और सलाम । पहला भाग है – नज़्म, ये संग्रह है मेरी कविताओं, जो किसी क्रम में नहीं हैं और जिनमें हिंदी और उर्दू दोनों का पुट है। किताब का दूसरा भाग है – गुफ्तगू, जो एक शायरीनुमा सवाल-जवाब हैं, मेरे और मेरे प्रतिभावान-संवेदनशील दोस्त, बैचमेट एवं भारतीय विदेश सेवा के वरिष्ठ अधिकारी श्री नितिन प्रमोदजी के बीच। बाएँ पृष्ठ पर मेरी पंक्तियाँ हैं, जिनका जवाब नितिनजी ने दाएँ पृष्ठ पर दिया है। अंत में है सलाम, जिसमें मैंने अपने कुछ शेर पेश किए हैं। परिशिष्ट में पाठकों की सुविधा के लिए कुछ हिंदी और उर्दू शब्दों के अर्थ दिए गए हैं।
अब पढ़ने वाले सवाल कर सकते हैं कि अंग्रेजी स्कूल से पढ़के, इंजीनियरिंग की तालीम हासिल करके, फिर एकव्यस्तम पेशे में रहकर, मोहतरमा को कविताएँ, शेर-ओ-शायरी करने का यह क्या फितूर सूझा? तो जनाब, असल बात ये है कि मसरूफियत है तो क्या तन्हाई ना होगी? कला के मशहूर शागिर्द नहीं, तो क्या कला की पहचान ना होगी? उससे मोहब्बत ना होगी? बचपन में किसी हिंदी पत्रिका की कहानी के बीच ‘बॉक्स’ में शेर-ओ-शायरी और कविताओं के पढ़ने के शौक ने कब शायरा और कवयित्री बना दिया और ये उम्र के किस दौर में हुआ? ये अब ठीक-ठीक याद नहीं आता। खैर छोड़िए, पुरानी बातें हैं, इनको बहरहाल किसी और दिन के लिए रखते हैं। मौजूदा किताब के पहले भाग की कुछ रचनाएँ 10 वर्ष तक पुरानी हैं, व्हाट्स एप से जो संदेशों का आदान-प्रदान शुरू हुआ, वो दूसरे और तीसरे भाग की रचनाओं की शक्ल में इस किताब में दर्ज है।
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