संस्कृत वांङमय में कर्म सिद्धांत : परब्रह्म परमात्मा की इच्छा की प्रकाशमय अभिव्यक्ति रूप इस सृष्टि में मनुष्य की श्रेष्ठता किसी से छिपी हुई नहीं है-नहि मानुणात् श्रेष्ठतरं हि किञ्चित्। इसकी श्रेष्ठता का एक प्रमाण यह भी है कि वह मननशील है और मननशीलता का ही यह परिणाम है कि वह शिवसंकल्पपूर्वक शास्त्रविहित कर्मों में प्रवृत्त होकर श्रेष्ठ आचरण करता है और उसका यह आचरण ही अन्य के लिए मार्गदर्शक बनता है-
यद् यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।
यहाँ हम अपनी ऋषि-महर्षियों की परम्परा के साथ उन महनीय व्यक्तित्व आचार्य दयानन्द जी भार्गव का इस अवसर पर स्मरण करना अपना कर्तव्य समझते हैं जिन्होंने न केवल अपने आचरण से अपितु कृपापूर्वक विशेष विचार-विमर्श के समय जीवन के प्रत्येक क्षण में उपयोगी कर्मसिद्धान्त विषयक कतिपय सर्वमान्य दृष्टिकोण को समझाकर भी हमारा उत्तम मार्गदर्शन किया है। उनके अनुसार कर्म सिद्धान्त भारतीय चिन्तन का मेरुदण्ड है। ब्राह्मण-श्रमण परम्परा परस्पर विरोधी माने जाने वाली होकर भी इन दोनों परम्पराओं में कर्मसिद्धान्त को समान रूप से मान्यता मिली है। प्रायः ईश्वर कर्तृत्व को न मानने वाले अथवा वेद को न मानने वाले को नास्तिक संज्ञा का अभिधेय समझा जाता है, किन्तु पाणिनि के अनुसार नास्तिक वह जो कर्मफल में विश्वास नहीं रखता। इस दृष्टि से चार्वाक ही एकमात्र नास्तिक ठहरता है, किन्तु चार्वाक के अनुयायी किसी समुदाय के अस्तित्व का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता। आज भी यदि कोई छुटपुट व्यक्ति ऐसे मिल जाते हैं जो कर्मसिद्धान्त में विश्वास नहीं रखते तो वे चार्वाक के वंशज नहीं है प्रत्युत पश्चिम से आयातित तथाकथित आधुनिकता की उपज हैं। भारतीय परम्परा कर्मसिद्धान्त को एकस्वर से स्वीकार करती है। कर्म तथा कर्मफल पर आश्रित पुनर्जन्म की अवधारणा का कोई गम्भीर विरोध भारतीय परम्परा में नहीं हुआ। यह सच है कि इस कर्म के सिद्धान्त का विस्तार प्रत्येक दर्शन ने अपने ढंग से किया किन्तु उस सारे प्रतिपादन की पृष्ठभूमि में कुछ ऐसे सामान्य तत्व भी हैं, जो सभी दर्शनों को मान्य हैं तथा जिनका साधना में सीधा उपयोग है।
Sanskrit Vangmay mein Karm Siddhant
संस्कृत वांङमय में कर्म सिद्धांत
Author : Prof. Satyaprakash Dubey
Language : Hindi, Sanskrit
ISBN : 9789385593888
Edition : 2017
Publisher : RG GROUP
₹400.00
Bhagwan Kulkarni Pune21 –
original Sanskrit Mantra is quoted for Reference – Makes it Authentic and scholarly. Justice to topic! Excellent!!