Rajasthani Lok Natya-Khyal

राजस्थानी लोक नाट्य-ख्याल
(कुचामणी ख्याल के विशेष संदर्भ में)
Editor : Dr. Vikram Singh Bhati
Language : Hindi
Edition : 2022
ISBN : 9789394649125
Publisher : Rajasthani Granthagar

319.00

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राजस्थानी लोक नाट्य-ख्याल

surely राजस्थान अपने गौरवशाली इतिहास एवं संस्कृति के कारण विश्वविख्यात रहा है। यहाँ के वीरों की वीरता, शौर्य के साथ ही कला, साहित्य एवं संस्कृति के नानाविद् पक्ष विशिष्ट स्तर की सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यताओं के साथ यहाँ की साहित्यिक परम्परा अद्वितीय रही है। अति प्राचीनकाल से राजस्थानी साहित्य की परम्परा यहाँ के जन-जीवन में प्रवाहमान होती रही है। Rajasthani Lok Natya-Khyal

राजस्थान के इस विशाल भू-भाग में यहाँ जितना लोक साहित्य आज फला-फूला मिलता है, अन्यत्र कहीं नहीं। मानव जीवन के क्रमिक विकास के साथ लोक-साहित्य अविच्छिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। ग्रामीण लोक-जीवन यहाँ की संस्कृति की अनूठी थाती है। इस लोक जीवन में राजस्थानी संस्कृति का सच्चा और वास्तविक प्रतिबिम्ब देखने को मिलता है।

also लोक को परिभाषित करते हुए डाॅ. सत्येन्द्र ने अपनी पुस्तक ‘लोक साहित्य विज्ञान’ में लिखा है कि लोक मनुष्य समाज का वह वर्ग है जो अभिजात्य संस्कार, शास्त्रीयता और पाण्डित्य की चेतना अथवा अहंकार से शून्य है और जो एक परम्परा के प्रवाह में जीवित रहता है। ऐसे लोक की अभिव्यक्ति में जो तत्त्व मिलते हैं वे लोक तत्त्व हैं। डाॅ. वासुदेव शरण अग्रवाल लिखते हैं कि “लोक हमारे जीवन का महासमुद्र है। उसमें भूत, भविष्य, वर्तमान सभी कुछ संचित रहता है।”

Rajasthani Lok Natya-Khyal

राजस्थानी लोक संस्कृति का विशेष अंग यहाँ के लोक नाट्य हैं, जिनका सम्बन्ध मानव सभ्यता के साथ जुड़ा हुआ है। राजस्थान का अधिकांश भाग ग्रामीण जीवन प्रधान रहा है। ग्राम्य-जीवन की प्रधानता के कारण लोकजीवन की जितनी रंगिनियाँ यहाँ देखने को मिलती है, उतनी अन्यत्र देखने में नहीं आती। तथाकथित सभ्यता भी इन गाँवों से अछूती रही है, इसलिए ग्राम्य संस्कृति के मूल रूप, रंग और रस में किसी प्रकार की विकृति नहीं पाई गई है। ये नाट्य ख्याल, स्वांग और लीलाओं के रूप में विशेष रूप से प्रसिद्ध रहे हैं।

राजस्थान में ख्याल की परम्परा काफी पुरानी रही है। डाॅ. महेन्द्र भानावत ने ‘लोकनाट्य परम्परा और प्रवृत्तियां’ में लिखा है ‘लोकनाट्य का वह रूप जो परम्परागत बंधी- बंधाई रंगशैली में लोकजीवन में प्रचलित आख्यानों का प्रदर्शन कर सामान्य जनता का मनोरंजन करता है, ‘ख्याल’ कहलाता है।’

in short राजस्थान के प्रचलित ख्यालों में कुचामणी शैली के ख्याल मारवाड़ में बहुत प्रचलित हैं। इसलिए इन्हें मारवाड़ी ख्याल भी कहते हैं। राजस्थानी लोक नाट्य-ख्याल शीर्षक पुस्तक में अधिकारी विद्वानों ने अपने आलेखों में कुचामणी ख्यालों के सम्बन्ध में कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां प्रस्तुत की हैं जो विद्वान पाठकों के साथ शोधार्थियों के लिए बहुत ही उपयोगी हैं।

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