Bidawat Rathoron ka Vrihat Itihas (1488-2008E.)

बीदावत राठौड़ों का वृहत् इतिहास (1488-2008ई.)
Author : Rajendra Singh Rathore
Language : Hindi
ISBN : 9789384168766
Edition : 2015
Publisher : RG GROUP

400.00

बीदावत राठौड़ों का वृहत् इतिहास (1488-2008ई.) : राव बीदाजी राठौड़ ने 1488ई. में स्वतंत्र बीदासर राज्य की स्थापना की थी, जिसे बाद में राव गोपालदास ने 1599ई. में बीकानेर राज्य में विलय कर दिया। सन् 1801ई. में बीदावत राठौड़ों ने बीकानेर महाराजा सूरत सिंह के शोषण से तंग आकर बीकानेर राज्य से विद्रोह कर जोधपुर में शामिल होने का निर्णय किया परन्तु कुँवर उम्मेदसिंह बीदासर ने प्रयास करके बीकानेर राज्य के पक्ष में सबको मना लिया।
बीदासर ठिकाने का यह पारम्परिक दायित्व था कि वह सभी बीदावत सरदारों का टेक्स वसूल कर राज्य में जमा करावें। परन्तु 1882ई. में महाराजा डूँगरसिंह ने टेक्स 51 हजार से बढाकर 87 हजार कर दिया। यह बढ़ोतरी हद से ज्यादा थी। इस कारण ठाकुर बहादुरसिंह बीदासर के नेतृत्व में बीकानेर के सरदार संगठित होकर विरोध करने लगे। बड़ी संख्या में राजपूत लोग अपना राशन कपड़े के थैलों में लेकर बीदासर के गढ़ में एकत्र हुए। परन्तु अंग्रेजों के तोपखाने से घिर जाने के कारण इन्होंने युद्ध का निश्चय छोड़ शान्ति का मार्ग अपनाया फिर भी अंग्रेजों ने किले और बाजार चार घंटे लूटकर किले को बारूद से उड़ा दिया। ठाकुर बहादुर सिंह को देश निकाला हुआ और आगे चलकर उनके पुत्र हुकमसिंह को जेल हुई, जहाँ उनकी संदिग्ध परिस्थिति में मृत्यु हुई और मूमासर का खुशहाल क्षेत्र बीदासर से अधिग्रहित किया गया। बीकानेर के सामन्तों के लिए जो त्याग बीदासर ने किया वैसा उदाहरण 19वीं सदी में राजस्थान में कहीं नहीं देखा गया। महाराजा गंगासिंह को बाद में पछतावा हुआ और इसलिए, उन्होंने बीदासर के सामन्त को राजा की वंशानुगत पदवी दे दी। बीदावत राठौड़ बीकानेर राज्य की सेना की हरावल (अग्रभाग) के योद्धा थे।

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