Rajasthan Ke Gauravshali Itihas Me Kayastho Ki Bhumika

राजस्थान के गौरवशाली इतिहास में कायस्थों की भूमिका
Author : Mahesh Chandra Mathur
Language : Hindi
Edition : 2024
ISBN : 9788119488599
Publisher : Rajasthani Granthagar

Original price was: ₹300.00.Current price is: ₹249.00.

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राजस्थान के गौरवशाली इतिहास में कायस्थों की भूमिका

surely राजस्थान का इतिहास गौरवशाली रहा है। यहाँ विभिन्न राजवंशों ने अपना-अपना शासन स्थापित किया। शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों की आवश्यकता होती है। इस दृष्टि से मारवाड़ राज्य में विभिन्न पदाधिकारियों की नियुक्ति की गई। भिन्न-भिन्न जाति के पदाधिकारियों की यहाँ के शासन को सुचारू रूप से चलाने में विशिष्ट भूमिका रही है। इनमें खीची, मुहणोत, पुरोहित, पंचोली, जोशी, भण्डारी, सिंघवी, भाटी, राठौड़, व्यास आदि के नाम गिनाये जा सकते हैं। मारवाड़ राज्य की ओहदा बही के अनुसार इन्हें योग्यता के अनुसार पद दिये जाते थे। कुछ पदों के नाम इस प्रकार हैं, यथा- मुसायब, दीवान, बख्शी, किलेदार, ड्योढीदार, दारोगा, हाकम, पोतदार, फौजबख्शी आदि -आदि। Rajasthan Gauravshali Itihas Kayasth

also मारवाड़ राज्य में कायस्थ जाति के लोग विभिन्न पदों पर आसीन रहे। उन्होंने अपनी योग्यता से यहाँ के शासन को सुचारू रूप से चलाने में विशिष्ट भूमिका निभाई। समय-समय पर जो कार्य उन्हें सौंपा गया उसे बखूबी निभाया। इस दृष्टि से श्री महेश चन्द्र माथुर द्वारा लिखित पुस्तक “राजस्थान के गौरवशाली इतिहास में कायस्थों की भूमिका” अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण है। लेखक ने इस पुस्तक को पांच अध्यायों में विभक्त किया है। इन अध्यायों के अतिरिक्त चार परिशिष्टों में उपयोगी सामग्री जुटाई गई है।

Rajasthan Gauravshali Itihas Kayasth

all in all “मारवाड़ में कायस्थों का इतिहास और मारवाड़ में कायस्थ कर्णधार” शीर्षक प्रथम अध्याय में लेखक ने यह उल्लेख किया है कि कायस्थों ने समूचे भारत में राज किया है। इस बात की पुष्टि में लेखक ने महाभारत काल में कश्मीर का राजा सुशर्मा, दक्षिण भारत में विजय नगर साम्राज्य का शासक कृष्णदेव राय तथा पुलकेशिन द्वितीय का हवाला देते हुए यह स्पष्ट किया है कि उत्तर से दक्षिण तथा पूरब से पश्चिम अर्थात् सम्पूर्ण भारत में कायस्थ राजाओं ने अपना साम्राज्य स्थापित किया। कालान्तर में कायस्थ राजाओं का पतन शुरू हुआ और मध्यकाल तक आते-आते उनका राज छिन गया। हाँ मध्यकाल में वे राजा भले ही न रहे हों लेकिन हर राज्य में उन्होंने महत्त्वपूर्ण पदों पर रहते हुए युद्ध एवं राज्य के विकास में अपनी विशिष्ट भूमिका निभाई।

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