महाभारत के पात्र
बचपन में बड़े-बुजुर्गों से सुना था कि ‘महाभारत ग्रंथ’ घर में नहीं रखना चाहिए, क्योंकि इससे घर में ‘महाभारत’ अर्थात् लड़ाई होती है। ‘महाभारत’ का अर्थ ही ‘लड़ाई’ का ग्रन्थ घोषित कर दिया गया। also तब जिज्ञासा होना स्वाभाविक था कि क्या किसी ग्रंथ को पढ़ने से भी कोई व्यक्ति युद्ध में प्रवृत हो सकता है? तब ऐसे ग्रंथ को अवश्य पढ़ना चाहिए और इस कसौटी पर देखना चाहिए कि क्या इससे हिंसक प्रवृत्ति होती है। Mahabharat Ke Patra
परन्तु जब सेवानिवृत्ति पश्चात् उक्त ग्रन्थ पढ़ा तो विस्मय का ठिकाना नहीं रहा, जिस ग्रंथ को श्री वेद व्यासजी ने लिखा और जिस ग्रंथ में भगवान श्री कृष्ण के मुख से निसृत ‘ श्रीमद्भगवद्गीता’ का उपदेश है उसमें युद्ध करने या हिंसक प्रवृत्ति का तो उल्लेख ही नहीं है। all in all इस ग्रंथ में जो उपदेश है वह मानव मात्र के कल्याण के लिये है। युद्ध करने का उपदेश अपने धर्म के अनुसार जो कर्म निश्चित किया गया है, उसको करने के लिये है। तब फिर प्रश्न होता है कि महाभारत युद्ध” हुआ उसमें केवल दुर्योधन की मात्र राज्य लिप्सा ही एक मात्र कारण था या अन्य कारण भी थे? अगर मात्र राज्य लिप्सा ही कारण होता तो दुर्योधन को इतने अन्य राजाओं का सहयोग नहीं मिलता और इसी तरह पाण्डवों को भी श्री कृष्ण जैसे उस समय के सर्वश्रेष्ठ नीतिज्ञ, वीर तथा अन्यों का सहयोग नहीं मिलता।
Mahabharat Ke Patra (Characters of Mahabharata)
अतः यह युद्ध नैतिकता बनाम अनैतिकता, धर्म विरुद्ध अधर्म, सदाचार बनाम अनाचार में प्रवृत शक्तियों के मध्य था। और इसमें पाण्डवों की जय मानव स्वातन्त्रय के सत्य की जय है, धर्म की जय है, मानवता की जय है। महाभारत मात्र वीर गाथा नहीं है, युद्ध गाथा भी नहीं है यह मनुष्यत्व की कठिन यात्रा का काव्य है। और इस युद्ध में जो प्रमुख नायक थे, उनके चारित्रिक गुणों, अवगुणों के कारण यह युद्ध हुआ। और जब कोई घटना घटित होती है तो उसके प्रारम्भ होने की पृष्ठभूमि पहले से ही तैयार होती है। accordingly लेखक ने इसी दृष्टिकोण को रख कर विश्लेषण करने का प्रयास किया है।
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