Hindi Parchai Kavya Parampara aur Mulyankan

हिन्दी परचई काव्य परम्परा और मूल्यांकन
Author : Dr. Pukhraj
Language : Hindi
ISBN : 9788188757398
Edition : 2017
Publisher : RG GROUP

400.00

हिन्दी परचई काव्य परम्परा और मूल्यांकन : हिंदी परचई काव्य संत काव्य धारा का ही अविभाज्य अंग है। हिंदी में संत-भक्तों का उल्लेख तो बहुत से भक्तमालों में हुआ है। लेकिन उनमें संत-भक्त विशेष के सम्पूर्ण जीवन का समग्र विवेचन-विश्लेषण नहीं हुआ है। जबकि परचई काव्य में उस संत-भक्त विशेष का सम्पूर्ण जीवन चित्रण युग सापेक्षता के साथ उद्घाटित हुआ है। इस काव्य की प्रत्यक्ष विषयवस्तु संत-भक्तों के जीवन-प्रसंगों से संबंधित है।
परचईकारों ने जिन संत-भक्तों को आधार बनाकर परचइयाँ लिखी हैं, वे वास्तव में मानवीय धर्म के सच्चे प्रचारक व रक्षक थे। उन्हीं संत-भक्तों के कारण मानवीय धर्म आज भी रक्षित है। संत-भक्तों का व्यक्तित्व मानव समाज के लिए वरदान और आदर्श के रूप में विकसित हुआ। तत्कालीन युग की संतप्त मानवता को अभ्युत्थान की ओर अग्रसर करने का सतत प्रयास इन संत कवियों ने किया।
काव्य रूप की दृष्टि से परचई काव्य एक सुगठित विधा है। इसमें तत्कालीन धार्मिक-सामाजिक-ऐतिहासिक तथ्यों का यथार्थ चित्रण हुआ है। हमारा यह मानना है कि ये काव्य संत-भक्तों के जीवन-चित्रण के साथ ही तत्कालीन समसामयिक मानव जीवन के व्यापक प्रश्नों को उठाता है।
निस्संदेह हिंदी संत काव्य के परिप्रेक्ष्य में भाव और कला दोनों स्तरों पर परचई काव्य पर्याप्त सघन और भावोद्दीप्त चित्रण प्रस्तुत करता है इसमें भाव और कला का अनूठा संयोग है। भाषा में ऐसा साधारणीकरण गुण जो हिंदी साहित्य में अभूतपूर्व है।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि हिंदी-परचई काव्य विपुल और समृद्ध विधा है। परचईकारों ने संत-भक्तों का यथार्थ युग सापेक्षता के अनुरूप चरित्र-चित्रण करके साहित्य की सर्वोत्तम प्रतिष्ठा प्रदान की है। परचईकारों का समग्र काव्य सृजन समाजोन्मुखी रहा। परचईकारों ने धार्मिक-सामाजिक-ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को आपस में मिलाकर संत-भक्तों का प्रमाणित समग्र जीवन-चित्रण प्रस्तुत कर हिंदी-परचई काव्य का अविराम विकास किया, जो परवर्ती हिंदी जीवनी विधा का आदर्श बना।

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