धर्मवीर भारती के गद्य का जातीय स्वरूप : डॉ. दिनेश कुमार माथुर की यह सद्य: प्रकाशित पुस्तक कई अर्थ-संदर्भो में महत्त्वपूर्ण है। हिन्दी गद्य लेखन की जातीय परम्परा का अनुसन्धान इस पुस्तक की मूल-प्रतिज्ञा है। भारतीय स्वाधीनताआन्दोलन और हिन्दी गद्य के इतिहास का विकास समानान्तर हुआ है। इस स्वरूप विकास में जिस तरह जातीयता को प्राथमिकता मिलती चली गई, ठीक उसी क्रम में हिन्दी-गद्य का स्वरूप भी जातीय होता चला गया।
हिन्दी गद्य के इसी जातीय स्वरूप को गढ़ने में यों तो पूरे परिमल वृत के महान लेखकों ने, शिद्दत से इस दायित्व का सफल निर्वाह किया है परन्तु इसमें धर्मवीर भारती का योगदान अप्रतिम है। डॉ. दिनेश कुमार माथुर की इस पुस्तक में उपरिविवेचित दोनों ही प्रतिज्ञाओं का वैज्ञानिक अध्ययन उपलब्ध है। मेरी निश्चित मान्यता है कि साहित्य-शोध के मौलिक ज्ञान और उनके अनुसंधान में इस पुस्तक की भूमिका महत्त्वपूर्ण मानी जायेगी।
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