श्री जालंधरनाथ पीठ “सिरे मंदिर” : आत्मकल्याण के लिये मार्ग प्रशस्त करने वाली नाथ-संस्कृति ने समस्त भारतभूमि को किसी समय बहुत प्रभावित किया, और राजस्थान को अधिकत: क्योंकि यहाँ के शासकों ने और जनता ने नाथ-पद्धति का खुले हृदय से स्वागत कर उसे आत्मसात करने का प्रयास किया। नवनाथों से समादृत योगिराज श्री जालंधरनाथ की तपस्याभूमि कलशाचल, जालोर इस सत्प्रयास का केन्द्र रहा। इसीलिये जालंधर-पीठ ‘सिरे मन्दिर’ हुआ।
इस शोध-कृति में ‘सिरे मन्दिर’ में विद्यमान भ्रमर गुफा आदि महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों, शिलालेखों एवं अन्य ऐतिह्य सामग्री का इत्थंभूत वर्णन तो लेखक डॉ. शर्मा ने किया ही है, साथ में मारवाड़ के अनेक कवियों की इन स्थानों के वर्णन में या नाथ-भक्ति में मुखरित हुई वाणी का पाठकों को होने वाला रसास्वादन निश्चय ही उन्हें इस साहित्य के अध्ययन के लिये उन्मुख करेगा।
राजस्थान के राजकुलों पर इन सिद्धों की पर्याप्त कृपा रही। अनके राजाओं को तो शासन-सत्ता ही उस गुरु-कृपा के फलस्वरूप मिली। जोधपुर के म. मानसिंह तो इस जालंधर-पीठ के ऋणी हैं। उनका ‘सिरे मन्दिर’ से जो आजीवन सम्बन्ध रहा, अपने इष्ट श्री जालंधर नाथ की भक्ति में उनका जो कवि-हृदय पुलकित हुआ, उस काव्यमय अभिव्यक्ति की लेखक द्वारा की गई अनूठी प्रस्तुति के लिये जितना कहा जाय, उतना ही कम है।
राजस्थान में नाथ-संस्कृति के उत्थान तथा व्यापक प्रचार-प्रसार को ऐतिह्य के आधार पर लेखन-बद्ध करने का समग्र प्रयास अभी तक प्रतीक्षित ही है। डॉ. भगवतीलाल शर्मा का इस दिशा में यह प्रथम सत्प्रयास है। यह अध्ययन अन्य अनुसंधित्सुओं के आगामी प्रयासों के लिये प्रेरक सिद्ध होगा, ऐसी आशा है।
Shri Jalandharnath Peeth “Sire Mandir”
श्री जालंधरनाथ पीठ “सिरे मंदिर”
Author : Bhagwatilal Sharma
Language : Hindi
Edition : 2015
ISBN : 9788188756792
Publisher : RAJASTHANI GRANTHAGAR
₹279.00
Reviews
There are no reviews yet.