श्रीमद् एकलिंगपुराणम् : भगवान् शिव ही एकलिंगजी हैं। शिव स्वयं लिंग हैं, सूतसंहिता में इस संबंध में पर्याप्त विचार किया गया है और कहा गया है कि उसके विज्ञान मात्र से मानव विमुक्त हो सकता है, ज्ञापक को ही लिंग कहते हैं, शिव से ही सब ज्ञात होता है, शिव अन्य किसी से ज्ञात नहीं होते, जड़ वस्तु ही किसी स्वभिन्न चेतन के द्वारा जानी जाती है, चेतन कभी किसी अन्य के द्वारा नहीं जाना जाता, स्वप्रकाशरूप साक्षात् शिव जड़ तो है नहीं कि उन्हें किसी अन्य से जाना जाए : यस्य विज्ञानमात्रेण विमुक्तो मानवो भवेत्। शिव एव स्वयं लिङ्ग लिङ्गं गमकमेव हि। शिवेन गम्यते सर्वं शिवो नान्येन गम्यते। जडं हि गम्यतेऽन्येन नाजड़ मुनिपुङ्गवाः। शिवो नैव जडः साक्षात् स्वप्रकाशैकलक्षणः।। (सूतसंहिता यज्ञवैवभखंड, 28, 1-3)
भगवान् शिव ही समस्त जगत के परहित में निरत रहते हैं, इनसे समस्त भूतगणों के दोषों का निवारण होता है, सकल लोकों में शांति होती है और सभी प्राणी सुखी होते हैं : शिवमस्तु सर्वजगतां परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः। दोषाः प्रयान्तु शान्तिं सर्वत्र सुखी भवन्तु सकल लोकाः।।
(शिवधर्मोत्तरपुराण 1, 1) परमेश्वर एकलिंगजी बहुत कृपालु है, वे आशुतोष हैं। आदि शिव के स्वरूप एकलिंगजी की कृपादृष्टि निखिल विश्व, समस्त चराचर पर रही है।
Shrimad Eklingpuranam
श्रीमद् एकलिंगपुराणम्
Author : Shri Krishna ‘Jugnu’, Bhanwar Sharma
Language : Hindi, Sanskrit
Edition : 2011
ISBN : 9789380943046
Publisher : Other
₹900.00
Reviews
There are no reviews yet.