लोक संस्कृति व अन्य निबन्ध : लोकवार्ता के संदर्भ में अनेकों बार ‘लोक’ लोकजीवन, लोकमानस, लोकचेतना आदि को परिभाषित किया गया है। लोक का अर्थ है सर्वजन, सर्ववर्ण, सब लोग, आम आदमी: यह वर्ग और व्यक्ति की विशिष्टताओं का मूल आधार है; स्वयं अति वैयक्तिक होने पर भी समाज में व्यक्तित्व का स्त्रोत है। मूल्य और मान्यताओं की अनंत सम्पदा, असंख्य युगों की स्मृतियों का कोश, इनसे बनता है। लोकमानस मूल है लोक संस्कृति का। संस्कृति जैसा कि माना जाता है, समाज की धरती के नीचे गड़ी हुई मृत धरोहर नहीं है वरन् वह जीवन्त शक्ति है, जो हमारे आचार-विचार, व्याहार-व्यवहार को रूप देती है और मन की ऊर्जाओं एवं प्रवृत्तियों को वश में रखकर ‘गठन’ का निर्माण करती है, रूपित एवं व्यक्त करती है। कोई भी मानव समुदाय की संस्कृति शून्य नहीं हो सकती। वह अमरतत्व, जो सब-कुछ बदलने पर भी नहीं बदलता लोक संस्कृति का तत्व है। कारण कि लोक संस्कृति का मूलोदगम् लोकमानस का गंभीरतम आयाम है। लोक संस्कृति इसी कारण हमारी सामाजिकता, सभ्यता, भाषा, युगबोध और मूल्य चेतना का आधारभूत स्त्रोत मानी जाती है।
Lok Sanskriti Va Anya Nibandh
लोक संस्कृति व अन्य निबन्ध
Author : Ramprasad Dadhich
Language : Hindi
Edition : 2017
ISBN : N/A
Publisher : RAJASTHANI GRANTHAGAR
₹125.00
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