जाट/जट वंशावली अथ गोत्रावली : जट/जाट शब्द संघ का पर्यायवाची है, जो महर्षि पाणिनि की व्याकरण अष्टाध्यायी से स्वंय सिद्ध है। अतः जट/जाट ही संघ है, और संघ ही जट/जाट है। जट/जाट समुदाय के साथ विडम्बना यह रही है कि जट/जाट वर्ग ने शस्त्र सम्भाले और शास्त्रों से दूर रहे, यही कारण था, कि इनके द्वारा किये गये शौर्यपूर्ण कार्यो, महान कार्यो, गौरव गाथायें आदि इस वर्ग के प्रकाश में नहीं आ पाई। इतिहासकारों, लेखकों ने वंश नाम तो उपयोग किये परन्तु जट/जाट वर्ग को उनसे अछूता रखा गया। विडम्बना यह भी है, कि जट/जाट वर्ग को मात्र वंश रूप में देखा गया, जबकि जट/जाट वंश नहीं है, वरण यह “शतशः वंशों का संघ है। इस वर्ग में सभी आर्य क्षत्रिय वंश विद्यमान हैं, जो भारतीय धर्म शास्त्रों एवं भारतीय ग्रन्थों में वर्णित हैं। यह भी विडम्बना हैं कि इतिहासकार अथवा शोधकर्ता वर्तमान तक जट/जाट शब्द को मात्र एक वंश रूप में ही मान कर शोध के लिये कार्य करते दिखाई देते हैं, वास्तविक स्थिति दूसरी ही होती यदि जट/जाट शब्द को “शतशः वंशों का संघ की दृष्टि से शोध अथवा इतिहास की संरचना होती। यौधेयों में कही भी जट संघी वर्णित नही किया गया। जबकि वास्तविकता यह है, कि साक्ष्यों एवं तथ्यों के आधार पर यौधेय ही जट संघी थे, इस का प्रमाण है कि यौधेयों के जितने भी संघ/गणसंघ थे, वे सभी यथावत जट/जाटों में वंश (गौत्र) रूप में विद्यमान हैं और शास्त्रों में वर्णित यौधेयों के स्थान दिल्ली के 300-400 मील क्षेत्र में ही जाटों का स्थापथ्य मौजूद है।
संघीय/गणसंघीय शासन व्यवस्था, वैदिक काल से लेकर पौराणिक काल तक यथावत् संचालित थी। अधिकांश योधयो संघ/गणसंघ वंश नाम पर ही थे, और इन्ही संघों/गणंसघों के नाम पर जटो/जाटों में प्राचीन काल से वर्तमान तक वंश (गौत्र) विद्यमान हैं। संघो/गणसंघों को प्राचीन काल में जट संघ ही कहा जाता था। कालान्तर में इस जटसंघ से विभिन्न वर्ग, जाति अथवा धर्मान्तरण द्वारा किसी न किसी कारणवश निकलते गये, और उनका अस्तित्व अलग होता गया।
Jaat/Jat Vanshawali ath Gotrawali
जाट/जट वंशावली अथ गोत्रावली
Author : B.S. Baliyaan
Language : Hindi
ISBN : 81861032711
Edition : 2015
Publisher : RG GROUP
₹279.00
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