सियासत के छक्के पंजे : मूल्यहीनता के दौर में एक संवेदनशील व्यक्ति कितना बहुआयामी होता है। इस तनाव का विरेचन अत्यंत आवश्यक है, अन्यथा यही का कारक बन जाता है। लेखक वर्ग लेखन के माध्यम से विरेचित होता है। वक्रजी ने भी विरेचन के लिए इसी माध्यम को चुना है। कविता पर्याप्त नहीं हुई तो गद्य की ओर रूख किया। गद्य में भी व्यंग्य की ओर बढ़े लेकिन वक्रजी के इस लेखन से स्पष्ट है कि विरेचन के लिए अब उन्हें व्यंग्य विधा भी अपर्याप्त लग रही है। किसी भी लेखक के लिए यह सर्वाधिक पीड़ादायक छटपटाहट होती है, जब उसे प्रचलित विधाओं से भी इतर कुछ कहना होता है, वक्र ऐसी ही छटपटाहट की पीड़ा से गुजर रहे प्रतीत होते हैं।
लेखक की नजर से शायद ही कोई सामाजिक विषय छूटा है। वे इन मुद्दो पर न तो किसी पक्षकार की तरह टिप्पणी करते हैं और न ही किसी विषय-विशेषज्ञ का पांडित्य प्रदर्शित करते हैं। वे तो किसी चैपाल या थड़ी पर गपियाते एक सावचेत व्यक्ति की तरह बात करते हैं, जिसकी भाषा में ठेठ देशी शब्द हैं, प्रचलित अंग्रेजी शब्द भी है और हिंदी के आम शब्द तो है ही। यह गपियाता आदमी काव्यकार होने के कारण अपनी काव्य पंक्तियों का तो सटीक प्रयोग करता ही है, जरूरत के मुताबिक अन्य कवि-शायरों को भी सटीक कर लेता है। लेखन का यह सहज रूप इस संग्रह का सबसे प्रभावी पक्ष है। इस प्रभावशीलता की कसौटी यही है कि आप उनके तर्कों से अगर असहमत भी है तब भी उनको पूरा पढ़े बिना नहीं रह सकते। वक्र के लेखन का यह कुल स्वरूप व्यंग्य विधा के एक नये तेवर के जन्म का प्रभावी संकेत है।
Siyasat Ke Chakke Panje
सियासत के छक्के पंजे
Author : Kanhaiyalal Vakra
Language : Hindi
Edition : 2019
ISBN : 9788188757063
Publisher : RG GROUP
₹200.00
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