चकरिये की चहक (चकरिया रा सोरठा) : राजस्थानी का विपुल वाङ्मय शक्ति, भक्ति और अनुरक्ति के साथ-साथ नीति की मुक्ता-मणियों से भी आलोकित है। इसके प्रबन्ध-काव्य तो नीतिपरक सरस सूक्तियों से सुशोभन हैं ही, परन्तु स्वतंत्र रूप से नीतिपरक मुक्तक-काव्य भी इसमें प्रचुर परिमाण में रचा गया है।
यहाँ के नीतिकारों का विषय-चयन तो परम्परित ही रहा; परन्तु उन्होंने अपनी अभिव्यक्ति में उसे एक अनूठा ही स्वतंत्र काव्य-रूप दे डाला। छंदों के वामनावतार ‘दोहा’ के ‘सोरठा’-भेद के चतुर्थ चरणांत में अपनत्व का अमृत उँडेलते हुए अपने प्रिय पात्र को स्नेह-सने संबोधन से सम्बोधित कर इन नीतिकारों ने ऐसी सुंदर नवीन शैली की नींव डाल दी; जो आज भी सर्जन के क्षेत्र में सम्मानित है। यह ऐसा अनुपम विरल दृष्टांत है, जो किसी अन्य भाषा में शायद ही उपलब्ध हो।
उक्ति-वैचित्र्य वाणी का विभूषण होता है, उसे सामान्य से विशेष बनाने वाला। वाणी को समृद्ध तथा प्रभविष्णु बनाने हेतु यह उक्ति-वैचित्र्य-समन्वित सोरठावली यहाँ सम्मानित रही है और रहेगी। जीवन-मूल्यों के प्रति आग्रह रखने वाले राजस्थानी जनमानस को इन सत्यान्वेषी सोरठाकार रूप कबीरों का यह अमर शब्दोपहार है। उनके अनुभव-चिंतन की ये शब्द-नौकाएँ काल-धारा में सदैव संतरण करती रहेंगी। ऐसे नीति-निपुण सोरठाकारों को रंग है, रंग है, रंग है।
Chakriye Ki Chahak
चकरिये की चहक (चकरिया रा सोरठा)
Author : Shah Mohanraj, Dr. Bhagwatilal Sharma
Language : Rajasthani-Hindi
Edition : 2021
ISBN : 9789390179121
Publisher : Rajasthani Granthagar
₹129.00
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