राठौड़ों का उदय और विस्तार
‘राठौड़ों का उदय और विस्तार’ नवीन दृष्टिकोण से लिखा गया इतिहास है। राजपूताने के राठौड़ों के मूलपुरुष राव सीहा से लेकर वर्तमान महाराजा गजसिंह द्वितीय तक प्रामाणिक इतिहास को लिपिबद्ध किया गया है। राठौड़ों की उत्पत्ति, प्राचीनता, विस्तार एवं मान्यताओं पर विशद अनुशीलन किया है। Rathoron Uday-Vistar Nagnechiyan-Mata
surely राठौड़, कोई वंशगत खांप (जातीय शाखा) नहीं, एक राष्ट्र है, उसका प्राचीन नाम राष्ट्रकूट इसी का प्रतीक है। इस नेशन की स्वयं की अपनी सभ्यता (आदर्श) कला एवं गौरव गाथा है। इन राजाओं ने अपने वंश रूपी सूर्य के जाज्वल्यमान प्रकाश से संसार को प्रभावित किया है। इतिहासों में लिखा है, कि व्यक्तिगत वीरता में राठौड़ों का कोई भी जाति मुकाबला नहीं कर सकती।
राव सीहा, आस्थान, प्रातः स्मरणीय पाबूजी राठौड़, रावल मल्लीनाथ, राव वीरमदेव, चिरंजीव दसवें नाथ गोगादेव राठौड़, राव चूण्डा, राव जोधा, राव मालदेव, कल्ला रायमलोत, राव चन्द्रसेन, अमरसिंह राठौड़ आदि ऐसे देवपुरुष उत्पन्न हुए, जिन्होंने अपने वंश को उच्च शिखर पर पहुंचाया एवं नवकोटि मारवाड़ को स्थापित करने के आधार स्तम्भ रहें।
also राठौड़ों की शाखा-प्रशाखाओं के साथ-साथ वीर पुरुषों के संक्षिप्त परिचय एवं टिप्पणियाँ दी, जो इतिहास विषय में अभिरुचि रखने वालों के लिए उपयोगी व संग्रहणीय ग्रंथ बन पड़ा है। Rathoron Ka Uday Vistar
राठौड़ों की कुलदेवी श्री नागणेचियाँ माता (Rathoron Uday-Vistar Nagnechiyan-Mata)
दो शब्द भारत में शक्ति की उपासना प्राचीनकाल से ही अनवरत चली आ रही है। अभिलेखीय प्रमाणों से शक्ति की उपासना के अनगिनत प्रमाण मिलते है। मध्यकाल में, जीवन में युद्व और भय का वातावरण बना रहने से सूरवीर शक्ति के अवतार दुर्गा को अपनी आराध्या मानते थे। युद्व के समय योद्वा ‘जय माताजी’ का उद्घोष्ष किया करते थे। also वैदिक युग से ही शक्तिपुजा का बड़ा महत्व रहा है। शक्ति के विविध अवतारों की पुजा-अर्चना का उल्लेख महाभारत काल में ही मिलता है। Nagnechiyan Mata Rathores Kuldevi
युद्व के समय योद्वा ‘जय माताजी’ का उद्घोष्ष किया करते थे। वैदिक युग से ही शक्तिपुजा का बड़ा महत्व रहा है। शक्ति के विविध अवतारों की पुजा-अर्चना का उल्लेख महाभारत काल में ही मिलता है। basically बल और बुद्वि-प्रदाता के रूप में शक्ति की उपासना युगो-युगों से होती आई है और आज भी शकित के विविध रूपों की आराधना कर मनुष्ष्य अपने मनोवांछित फल प्राप्त करने की चेष्ष्टा करता रहा है। यह सर्वविदित है कि प्रत्येक कुल या जाति की एक कुलदेवी होती है, जो उस कुल-जाति की रक्षा करती है। राठौड़ वंश में कुलदेवी के रूप में नागणेचियां माताजी पूजित है।
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