राजपुरोहितों का राजस्थान के राजपरिवारों से सम्बन्ध : राजा, महाराजा अथवा सम्राट की राज सभा या किसी ठाकर जागीरदार वैदिक काल से लेकर पुराण काल तक मिलते हैं। विद्वानों ने कहीं-कहीं ऐसा उल्लेख किया है कि पुरोहित के बिना राज सभा (प्राचीन मंत्रिमण्डल) अपूर्ण होती है। रियासत काल में पुरोहित को राजगुरु की पदवी मिली और ये राजपुरोहित भी कहलाने लगे। जोधपुर रियासत में तिंवरी के पुरोहित राजगुरु रहते आये इनकी शाखा (जाति) सेवड़ कहलाती है, वे आज भी राजपरिवार से जुड़े हैं। इनके प्रमाण राव मालदेवजी के राजकाल में मिलते हैं। मारवाड़ के पुरोहितों का उल्लेख “रिपोर्ट मरदुमशुमारी राजमारवाड़ – सन् 1891 ईस्वी” में विस्तार से किया गया है। इसमें इनको राजपूतों के पोरूसो (वंशानुगत) गुरु बताया है। मारवाड़ में एक बड़ा थोक जमींदार ब्राहाणों का है, ये लोग राजपूतों के मोरुसी गुरु है और पिरोयत कहलाते हैं। इस पुस्तक को पढ़ने में जहाँ राजपुत कौम में अपने पूर्वजों के कृत्यों पर गौरव का अनुभव होगा, वहीं दूसरे लोगों को भी राजपुरोहित कौम के बारे में जानने का मौका मिलेगा।
Rajpurohiton Ka Rajasthan Ke Rajparivaron Ka Sambandh
राजपुरोहितों का राजस्थान के राजपरिवारों से सम्बन्ध
Author : Dr. Mahendrasingh Nagar
Language : Hindi
Edition : 2018
ISBN : 9788192453774
Publisher : RG GROUP
₹399.00
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