प्रतिहारों का मूल इतिहास : भारत के इतिहास में कुछ वंश बहुत महत्त्वपूर्ण रहे हैं, उनके साम्राज्य बड़े विस्तृत थे और उन्होंने साहित्य का बड़ा प्रसार किया। कुछ वंशों ने, जिनको जिस धर्म में आस्था थी, उसको बहुत फैलाया, परन्तु क्षत्रिय सभी धर्मों के प्रति उदार और सहिष्णु थे। शासक वर्ग जिस धर्म को मानता था, उसके अलावा अन्य धर्मों को संरक्षण प्रदान करते थे एवं दान-पुण्य देकर प्रोत्साहन देते थे। भारत के महान सम्राज्यों में प्रतिहारों का भी एक बड़ा साम्राज्य रहा है। इसकी एक विशेषता रही है कि जैसे मौर्य, नागवंश तथा गुप्तवंश आदि थे, उनके विरोधी दुश्मन एक तरफ ही थे, जिससे उपरोक्त वंशों के शासकों को अपने राज्यों तथा साम्राज्य के एक ही दिशा में शत्रु का सामना करना पड़ता था, जिससे वे सफल भी रहे। परन्तु प्रतिहारों के पश्चिम में खलीफा जैसी विश्वविजयी शक्ति से इनका मुकाबला चलता था। दक्षिण में राष्ट्रकूटों (राठौड़ों) से टक्कर थी, जो किसी भी सूरत में इनसे कम शक्तिशाली नहीं थे। पूर्व में बंगाल के पाल भी इनके शत्रु थे, वे इन जितने शक्तिशाली नहीं थे, फिर भी प्रतिहारों को उनसे युद्धों में व्यस्त रहना पड़ता था। अरब जो कि इनके शत्रु थे, उनके एक व्यापारी ने लिखा है कि प्रतिहारों को अपने साम्राज्य की समस्त दिशाओं में (चारों ओर) लाखों की संख्या में सैनिक रखने पड़ते है। इस प्रकार मौर्य, नागों और गुप्तों के मुकाबले में प्रतिहारों की शक्ति का आंकलन किया जाये तो प्रतिहारों की शक्ति उनसे अधिक होना सिद्ध होता है।
Pratiharon ka Mool Itihas
प्रतिहारों का मूल इतिहास
Author : Devi Singh Mandawa
Language : Hindi
ISBN : 97818186103201
Edition : 2018
Publisher : RG GROUP
₹200.00
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