प्राचीन कुरुक्षेत्र के पुरातात्विक स्थल और स्थापत्य : कुरूक्षेत्र प्रारम्भ से ही प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति तथा आध्यात्मिक चिन्तन का मुख्य केन्द्र रहा है। प्रस्तुत पुस्तक में प्राक्-हड़प्पा कालीन संस्कृति से लेकर वैदिक संस्कृति तक (वेद, आरण्यक, उपनिषद् तथा ब्राह्मण ग्रंथ) एवं उत्तर-मध्यकाल तक के पुरातात्विक स्थलों का वर्णन किया गया है। कुरूक्षेत्र और उसके आस-पास के भूभाग में पुरातात्विक अवशेष प्राचीन इतिहास को संजोए हुए हैं। प्रारम्भ में कृष्ण-यजुर्वेद की मैत्रायणी संहिता में कुरूक्षेत्र का उल्लेख है। ऋग्वेद में कुरूश्रवण एक राजा का नाम है, जो वैदिक मंत्रों का ज्ञाता है। अथर्ववेद में कुरूस्तुति नाम का एक पुरोहित है, जो यज्ञ में मन्त्रों का पाठ करता है। कुरूक्षेत्र का वर्णन तैत्तिरीयआरण्यक, तैत्तिरीयब्राह्मण एवं शतपथब्राह्मण में भी मिलता है। वस्तुतः कुरूक्षेत्र का सम्बन्ध देवी यज्ञों से था। जिस कारण इसे ब्रह्मदेवी भी कहा गया। सायणाचार्य ने शाट्टायन के आधार पर शर्यणावत् को कुरूक्षेत्र का एक सरोवर बताया है, जिसकी पहचान पुरातत्ववेता रोजर्स ने संन्निहित (सुनेतसर) से की है, जो वैदिक काल में वर्तमान था। महाभारत, पुराण और मनुस्मृति आदि में कुरूक्षेत्र के अन्य नाम के भी उल्लेख हैं, जो ब्रह्मदेवी, ब्रह्मयोनि, ब्रह्मावर्त, ब्रह्मर्षिदेश, समन्तपंचक आदि।
Prachin Kurukshetra ke Puratatvik Sthal aur Sthapatya
प्राचीन कुरुक्षेत्र के पुरातात्विक स्थल और स्थापत्य
Author : Chandrapal Singh
Language : Hindi
ISBN : 9789387297401
Edition : 2019
Publisher : RG GROUP
₹500.00
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