कच्छवाहों का इतिहास : भारत के इतिहास में राजपूत (क्षत्रिय) इतिहास का विशेष महत्व है। कछवाहा वंश क्षत्रियों के 36 कुलों में से एक है। वीरता के लिए तो राजपूत प्रसिद्ध रहे ही है परन्तु वीरता के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी कछवाहों की बड़ी देन है। इनके द्वारा निर्मित शिल्पकला के सुन्दर नमूने ग्वालियर के किले में सासदृबहू का मंदिर, दौसा, आमेर, जयपुर जहाँ का हवा महल तो विश्वप्रसिद्ध है ही, अलवर व कछवाहा इलाकों में अनेक महल मन्दिर आदि हैं। इनकी शिल्पकला के क्षेत्र में बड़ी देन है। इसी प्रकार साहित्य, धर्म, चित्रकला, संगीतकला आदि ललित कलाओं को भी इनके द्वारा बड़ा प्रोत्साहन मिला था। मूर्तियों के लिए जयपुर पूरे भारत का सबसे बड़ा केन्द्र रहा है। कछवाहों में अनेक व्यक्ति कवियों के आश्रयदाता रहे तथा वे खुद भी बड़े कवि हुए हैं। आमेर और जयपुर दरबार में बिहारी, पत्तकर जैसे कवि रहे है। बीरबल पहले राजा भगवादासजी की सेवा में था। बाद में इन्होंने उसे बादशाह को पेश किया था। कु. जगतसिंहजी के गोस्वामी तुलसीदासजी गुरु रहे थे। महाराजा सवाई जयसिंहजी द्वितीय ने मुगल काल में अश्वमेघ यज्ञ किया था। कछवाह बड़े राजनीतिज्ञ हुए हैं।
Kachhwahon ka Itihas
कच्छवाहों का इतिहास
Author : Devi Singh Mandawa
Language : Hindi
Edition : 2018
Publisher : RG GROUP
₹289.00
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