राजस्थान में जाटों का उत्थान : सिंध व पंजाब के निवासी जाटों पर जब बाह्य आक्रमणकारियों का दबाव पड़ा, तो वे सिंध व पंजाब को छोड़कर सुरक्षित आश्रय के लिए राजस्थान की ओर आये और यहां पर कुलीनतन्त्रीय व्यवस्था के अन्तर्गत कृषि और पशुपालन को अपनाकर अपना जीवन निर्वाह करने लगे। धीरे-धीरे जब बाहर से आकर राठौड़ो ने मारवाड़ व बीकानेर में अपनी सत्ता सुदृढ़ता से स्थापित कर ली और शेखावाटी में शेखावत काबिज हो गये, तब जाट कौम केवल उनकी प्रजा मात्र रह गई। हालांकि जाटों ने भरतपुर व धौलपुर में अपनी सत्ता स्थापित कर ली थी, परन्तु राजस्थान के बाकी इलाकों में जाटों की स्थिति दोयम दर्जे की बन गई थी। राजपूत शासकों ने अपने छुटभैइयों को जागीरें देकर और जागीरदारी व्यवस्था स्थापित कर जाटों का भयंकर आर्थिक व सामाजिक शोषण करना शुरू कर दिया था और उनको दयनीय स्थिति में पंहुचा दिया था। 20वीं शताब्दी के द्वितीय दशक में राजस्थान के जाटों में जागृति का सुप्रभात हुआ और फिर 1925 ई. में पुष्कर में आयोजित अखिल भारतीय जाट महासभा के अधिवेशन से प्रेरणा लेकर राजस्थान के जाटों ने अपनी शैक्षणिक व सामाजिक दशा को सुधारा और उसके बाद शेखावाटी, बीकानेर व मारवाड़ के जाट अपने-अपने संगठनों के अधीन संगठित होकर राजशाही व क्रूर सामन्तशाही के अत्याचारों के खिलाफ उठ खड़े हुए और उन्होने तब तक संघर्ष किया, जब तक कि वे राजशाही और जागीरदारी प्रथा को समाप्त कर स्वयं अपनी भूमि के मालिक नहीं बन गये, हालांकि इस संघर्ष में जाटों ने सबसे ज्यादा तकलीफ भोगी और अनेकों ने अपने प्राण गंवाये। राजस्थान के जाटों ने किस तरह सामन्तशाही से संघर्ष कर अपनी स्थिति को सुधार कर अपना उत्थान किया, इसका विस्तार से वर्णन इस पुस्तक में पढ़ने को मिलेगा।
Rajasthan Mein Jaaton Ka Utthan
राजस्थान में जाटों का उत्थान
Author : Dr. Pemaram
Language : Hindi
Edition : 2015
ISBN : 9789384168414
Publisher : RAJASTHANI GRANTHAGAR
₹359.00
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