जसोल का इतिहास (भाग 1, 2)
केवल राजस्थानी स्त्रोतों पर आधारित अपने आश्रितों के द्वारा लिखी गयी गौरव गाथा के सुरों से गुंजायमान, क्षेत्रीय इतिहास के तौर पर लिखे राजस्थान-मारवाड़ के ठिकानों के इतिहास-ग्रंथों से जसोल के इस इतिहास का स्वरूप पूरी तरह से अलग है। राजस्थानी के साथ संस्कृत, फारसी और अंग्रेजी स्त्रोतों की निष्पक्ष समीक्षा के आधार पर प्रस्तुत यह लेखन अपने आपको क्षेत्र विशेष तक सीमित न रख कर केन्द्रीय सत्ता तथा राजस्थान की अन्य रियासतों के साथ जसोल के खट्टे-मीठे संबंधों को प्रस्तुत करते हुए शासकों की उपलब्धियां गिनाकर ही विराम नहीं लेता अपितु जसोल ठिकाने की कृषि व्यवस्था, अर्थव्यवस्था, जलस्त्रोत, यहाँ लगने वाले मेले और उनसे होने वाली आय, शासकों के विवाह-सम्बंध, सतियों और महासतियों, मंदिरों के शिलालेखों आदि के सांस्कृतिक विवेचन से जसोल के राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक स्वरूप का एक सम्पूर्ण रंगीन चित्र प्रस्तुत करता है। इन्द्रधनुष की तरह, बहुरंगी, बहुढंगी। Jasol Ka Itihas
during शासक से लेकर आमजन तक को जोड़ने वाला, जमीन से जुड़ा यह इतिहास, ठिकानों के इतिहास के पुनर्लेखन के लिये न केवल प्रेरित करेगा वरन् आदर्श इतिहास ग्रंथ के रूप में मार्गदर्शक सिद्ध होगा, यही इसकी सबसे बड़ी उपादेयता है।
also जसोल भारत के राजस्थान राज्य के बाड़मेर जिले की पचपदरा तहसील का एक गाँव है। पूर्व मलानी क्षेत्र की राजधानी जसोल के ऐतिहासिक गांव पर राठौर राजपूतों के स्वतंत्र महेचा कबीले का शासन था। इसमें स्मारक, और रानी भटियानी का मंदिर शामिल है। देशी मलानी नस्ल के घोड़ों को वहां पाला जाता है। गांव राठौर शासकों द्वारा स्थापित किया गया था। जसोल के राठौड़, जो रावल मल्लीनाथ के वंशज हैं।
राव सीहा से कल्याणमल तक (संवत् 1212 से संवत् 1821 तक) – Jasol Ka Itihas (History of Jasol)
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