हिन्दू विवाह संस्कार : एक ऐसा शब्द है, जो सम्पूर्ण विश्व में स्त्री-पुरुष के एक विशेष पारस्परिक सम्बन्ध को सूचित करता है। किन्तु भारतीय सन्दर्भ में विवाह का अर्थ अत्यन्त शोभनीय, स्पृहणीय तथा पवित्र सम्बंध है। यह एक पवित्र संस्कार है, जिसकी परिकल्पना भारतीय मनीषियों ने वैदिक युग में ही कर ली थी और शीघ्र ही यह संस्कार भारत के सम्पूर्ण विस्तार में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण बन गया। कारण स्पष्ट है कि इस संस्कार की विचारणा मनोवैज्ञानिक स्तर पर सामाजिक अनुशासन और स्त्री-पुरुष के जीवन में स्थिरता, सौख्य और सामरस्य के लिए की गई थी।
वैदिक युग से आज तक इस संस्कार का मूल स्वरूप तो यथावत् है किन्तु सम्पूर्ण विश्व के हस्तामलकवत् हो जाने पर स्वभावतः ही अन्य देशों में प्रचलित विवाह प्रथाओं का प्रभाव भारतीय संस्कार पर भी पड़ा। विवाह की वैदिक सरलता सूत्र युग में जटिल हो गई और वर्तमान युग में पवित्रता के स्थान पर आडम्बर आ बैठा। जो विवाह एक अविच्छेद्य सम्बंध था, वह अब शासनादेश से विच्छेद्य भी बन गया… आदि।
प्रस्तुत पुस्तक वैदिक युग से सूत्र युग तक विवाह संस्कार पर विशिष्ट शोध है; किन्तु साथ ही वर्तमान युग में इससे सम्बद्ध ढेरों अधिनियमों और उनकी आवश्यकता एवं प्रभाव का भी इसमें आकलन हुआ है। इस रूप में यह सुधी पाठकों, जिज्ञासुओं तथा शोधार्थी छात्रों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
Hindu Vivah Sanskar
हिन्दू विवाह संस्कार
Author : Dr. Priti Prabha Geol
Language : Hindi
ISBN : 9789390179282
Edition : 2021
Publisher : RG GROUP
₹239.00
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