Shri Hanuman Prasad Poddar ke Kavya mein Bhakti Darshan aur Sanskritik Chetna

श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार के काव्य में भक्ति दर्शन और सांस्कृतिक चेतना
Author : Dr. (Smt.) Kamlesh Gaggad
Language : Hindi
ISBN : 9789387297784
Edition : 2020
Publisher : RG GROUP

400.00

श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार के काव्य में भक्ति दर्शन और सांस्कृतिक चेतना : विश्व इतिहास में भारत सदा ऋषियों, मुनियों आचार्यों, योगियों और संतों की तपोभूमि रहा है। आत्म रूपी सूर्य की रश्मियों के नित्य रमण करने वाले स्वानुभूति में प्रतिष्ठित संतों-महात्माओं ने ही इस राष्ट्र को गौरव प्रदान किया है। आत्मानुसंधान, आत्म संयम और आत्मानुभूति से प्रेरित एवं प्रकाशित जीवन भारतीय संस्कृति की अमूल्य देन है।
पोद्दारजी का विशाल वाङ्मय उनके अनुभव रत्नों का अक्षय भंडार है। उनकी साहित्य रचना का उद्देश्य इन अमूल्य रत्नों की अटल गहाराई से बाहर निकालकर जीवन तट पर बिखेरना रहा है, जिससे ये रत्न जन सामान्य को सुलभ हो सके। व्यवहार और परमार्थ दोनों क्षेत्रों में इस महामानव की पैठ कितनी गहन थी, उनकी जीवन दृष्टि कितनी तत्वग्रहणी और पैनी थी, इसका अनुमान इन अध्यात्म सूत्रों की विषयगत व्यापकता तथा शैलीगत स्वाभाविकता से सहज ही लगाया जा सकता है।
पोद्दारजी भारतीय मनीषा के सच्चे संवाहक महापुरूष थे। प्राचीन ऋषियों और मध्यकालीन संतों की भांति उनका सारा जीवन त्याग, तपश्चर्या से आलोकित था। इसी जीवन क्रम में अनेक संत-महात्माओं की सनातन पुनीत परम्परा में आधुनिक भारत के सुविख्यात अध्यात्म केन्द्र गीता प्रेस, गोरखपुर के प्राण प्रतिष्ठायक एवं मरूधरा के गौरवशाली रतनगढ़ (राजस्थान) के सपूत मनीषी श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार युग पुरूष के रूप में सदैव स्मरण किये जायेंगे। जिस प्रकार दक्षिण भारत की पांडिचेरी में महर्षि अरविन्द का आश्रय योग विधि एवं ब्रह्म विद्या का प्रमुख केन्द्र है, उसी प्रकार उत्तरी भारत में गोरखपुर स्थित गीता प्रेस पराविद्या तथा गीतोन्त कर्म, भक्ति एवं ज्ञान की त्रिवेणी बनकर भाईजी श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार के पावन संस्मरण के रूप में यह ग्रंथ सतत प्रेरणीय रहेगा। यदि दक्षिण योगियों में महायोगी श्री अरविन्द ज्ञानारूढ़ होकर आध्यात्मिकता का दिव्य-प्रकाश फैला रहे थे, तो उत्तर भारत में संत शिरोमणि राधा-माधव भक्ति के मुकुट मणि श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार कृष्ण भक्ति की अजय पताका फहरा रहे थे। आलोच्य ग्रंथ के अनुशीलन से यह तथ्य स्वतः स्पष्ट हो जायेगा।

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