Chittorgarh ka Itihas

चित्तौड़गढ़ का इतिहास – श्री रामवल्लभ सोमानी कृत वीरभूमि चित्तौड़ पर आधारित
Author : Dr. Shri Krishn ‘Jugnu’
Language : Hindi
Edition : 2022
ISBN : 9789391446840
Publisher : RAJASTHANI GRANTHAGAR

Original price was: ₹350.00.Current price is: ₹279.00.

चित्तौड़गढ़ का इतिहास – श्री रामवल्लभ सोमानी कृत वीरभूमि चित्तौड़ पर आधारित :

चित्रकूटाचलं चर्चितं च चत्वार चच्चेति।
चारुचैत्यं चित्रांगणं चित्रयोधां चतुरंगणम्।।

दुर्गों में सिरमौर चित्तौड़ की महिमा पृथ्वी के मनोरम मुकुट रूप में की गई है। चित्तौड़गढ़ चार ‘च’ के लिए भी चर्चित है। उसमें पहला सुंदर मंदिर, दूसरा चित्रांगन किला, तीसरा विचित्र लड़ाई करने वाले योद्धा और चैथा चतुरंग (चैसर या चतुरंगिनी सेना)। इसके नाम पर चित्तौड़ी आठम तिथि मनाई जाती है। इसमें आठ अहम चित्तौड़ी शब्द हैः- चित्तौड़ी गड़ (सुंदर, सुघड़ गढ़), चित्तौड़ी चड़ (चढ़ाई, फतह), चित्तौड़ी खड (पाषाण की खरल), चित्तौड़ी लड़ (निर्णायक लड़ाई), चित्तौड़ी जड़ (बातचीत की साख), चित्तौड़ी बड़ (बड़ाई, बड़प्पन), चित्तौड़ी भड़ (सहारा, इमदाद), चित्तौड़ी पड़ (शरणागति) एक दोहे में यह सब कहा गया हैः- चित्तौड़ी गड़ खड़ लड़, जड़ भड़पण अणमाप। महिमा वो ही जाणसी, जे चड़ छड़ पड़ तापत्र।।
यह दुर्ग अपने मानक गज और मुद्रा प्रमाण के लिए भी प्रसिद्ध रहा है। चित्तौड़ी गज (24 अंगुल प्रमाण), चित्तौड़ी प्रत (ग्रंथों की प्रमाणित प्रति), चित्तौड़ी टकसाल (मुद्रापातन शाला), चित्तौड़ी सिक्का (सुंदर और खरे सिक्के)
चित्तौड़ के सिक्के आज भी खरे हैं। सदियों पुराने नगरी के पंचमार्क और चित्तौड़ के महाराणाओं के नाम वाले सिक्के आज भी अनेकों संग्रह में है, जिनमें महाराणा मोकल, कुंभा, रायमल, सांगा और बनवीर आदि के शासनकाल के दुर्लभ सिक्के शामिल हैं। महाराणा स्वरूपसिंह, सज्जनसिंह से लेकर आजादी मिलने तक ‘दोस्ती लंदन’ के जो सिक्के चलते थे, शुद्ध चांदी के थे और 17 आना यानी 100 प्रतिशत से अधिक मानक वाले थे। बहुत कम लोगों को पता होगा कि एक चित्तौड़ दुर्ग ही देशी रियासतों में ऐसा था, जिसके चित्र को सिक्के पर ढाला गया था। चित्तौड़ ऐसा दुर्ग हैं, जहां सौ से अधिक शिलालेख मिले हैं। एक से बढ़कर एक और एक पंक्ति से लेकर सौ-सौ श्लोक तक प्रमाण वाले दस्तावेज। दुनिया में सबसे अधिक ताम्रपत्र मेवाड़ में ही मिले हैं। चित्तौड़ के प्रशस्तिकार वेद शर्मा, अत्रि भट्ट, महेश दशोरा के बड़े नाम हैं। महेश से मेवाड़ महाराणाओं सहित मालवा के सुल्तानों ने भी प्रशस्तियां लिखवाईं। ये विश्वास महाराष्ट्र में देवगिरि तक बना रहा।
गुजरात के शत्रुंजय पर्वत पर जैन मंदिर के निर्माण और जीर्णोद्धार में चित्तौड़ के सूत्रधार और शिल्पियों का सहयोग रहा। मालवा, मारवाड़, गोड़वाड़ आदि में यहां के शिल्पियों के बनाए महल, बाग बगीचे, बावड़ियां व मंदिर अलग पहचान रखते हैं। वास्तु के सबसे अधिक ग्रंथ यहीं तैयार हुए, जिनमें समरांगन सूत्रधार, अपराजित पृच्छा से लेकर राज वल्लभ आदि दर्जनों ग्रंथ शामिल हैं।

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