बंजारों का सांस्कृतिक इतिहास : बंजारे भारतीय संस्कृति में मधुर मोहक प्रतीक रहे है। मध्यकाल के संतों, भक्तों ने भी अपने भजनों, वाणियों, साखियों में बंजारों को जीवन शैली को आदर्श स्वरूप माना है। संसार रूपी समुद्र में रहकर विकास प्रकार निरपेक्ष रहना है- वह बंजारो की जीवन शैली बता देती है। गीता में भगवान श्री कृष्णा ने अर्जुन को कहा है- रहने के स्थान से मोह नहीं। निरपेक्ष भी और चित्त से स्थिर। आज यहाँ कल वहाँ चलते रहना है। किसी से राग भी नहीं द्वेष भी नहीं। बंजारा गुरु स्वरूप है, वह समदृष्टा है, यह न्यायप्रिय है, वह अमोलक हीरे देता है- बशर्त कोई मांगे भी! बिणजारा निडर है- सब जगह विचरता है, पहाड़-पठार-मैदान, वह बहते जल की तरह निर्मल है। घूमते-घूमते यह अनुभव सिद्ध हो गया है। उसका उदार प्रेम भी अनूठा है, वह रसिक है। बंजारों पर कथित लोक कथाओं, लोक गीतों में यह सब एक साथ देखा जा सकता है।
Banjaron ka Saanskritik Itihas
बंजारों का सांस्कृतिक इतिहास
Author : Jaipal Singh Rathore
Language : Hindi
₹300.00
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