Rajasthan Ke Pramukh Katha Geet

राजस्थान के प्रमुख कथा गीत
Author : Kailash Dan Charan
Language : Hindi
Edition : 2022
ISBN : 9789391446666
Publisher : Rajasthani Granthagar

239.00

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राजस्थान के प्रमुख कथा गीत : लोक संस्कृति में निहित हर विधा लोक की अपनी समय की देन है। इसलिए उसमें काव्यानुसाशन, शास्त्रीयता या छन्दोबद्धता ढूंढना व्यर्थ है। हवा के झोंकों की तरह इनकी अपनी गति व खुशबू है। फिर किसी भी प्रकार की शास्त्रीस अनुशासन की कैद से मुक्त इनका अपना अस्तित्व है। इन्हीं में से एक अनूठी लोक विधा है ‘लोक गाथा’ (Balled)

लोक गाथाएं लोक गीतों का ही एक प्रकार है जो परम्परा, शौर्य, धर्म, संस्कारों और संस्कृति को समेटे हुए हैं। पड्डश्री डाॅ. सीताराम लालस ने लोक गाथा शब्द को अंग्रेजी शब्द Balled का रूपान्तरण माना है। इस हेतु डाॅ. लालस ने डाॅ. श्री कृष्णदेवराय उपाध्याय का हवाला भी दिया है।

Balled की उत्पति लेटिन शब्द Ballure से मानी गई है। ठंससनतम का मूल अर्थ नाचना होता है। राॅबर्ट ग्रेम्स के अनुसार बेलेड में संगीत व नृत्य दोनों की प्रधानता होती है। डाॅ. मरे के अंग्रेजी शब्द कोश में बेलेड का अर्थ ऐसी उतेजना पूर्ण व स्पूर्तिदायक कविता, जिसमें कोई लोकप्रिय आख्यान का सजीव वर्णन हो दिया है। संसार की लगभग सभी भाषाओं में लोकगाथा जैसी विधाएं किसी न किसी रूप में मिलती हैं। अंग्रेजी के The Best of Robinhood से राजस्थानी के ढोला-मारू तक लोक गाथाएं सदियों से जनप्रिय विधा के रूप में आमजन की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती आई हैं। विचार करने पर लोक-गाथा लोक गीत व लोक नाट्य का मिश्रण प्रतीत होता है, जिसमें किसी ऐतिहासिक, आख्यानिक, लौकिक या भक्तिपरक धार्मिक घटना की कलापूर्ण अभिव्यक्ति होती है।

किसी जमाने में चैपालों की शोभा रही लोक गाथाएं व़ातपोसी के रूप में लोगों के मनोरंजन का प्रमुख साधन थी। ‘पाबूजी की पड़’ से लेकर ‘मूमल’ की दर्द भरी कथा या ‘बगड़ावतों’ की उदारता सभी कुछ लोक गाथाओं में समाहित था, जिनमें गायन, दृश्य या नाट्य का सहारा अभिव्यक्ति हेतु लिया जाता था। व़ातपोसी के कलाकार इन लोक गाथाओं की सजीव अभिव्यक्ति के लिए पाबूजी की पड़ के समान चित्रपट का प्रयोग भी करते हैं अन्यथा सभी तरह की दृश्यावली को सजीव करने के लिए ये कलाकार एकाभिनय यानि मोनोएक्टिंग तथा मिमिक्री तक का सहारा लेकर उसे मनोरंजक और सजीव बना देते हैं। इनका विडियो रिकाॅर्डिंग भी पड्डभूषण श्री कोमल कोठारी ने स्पायन संस्थान में किया था, जो वहां अब भी उपलब्ध है।

राजस्थानी व हिंदी के विद्वान लेखक श्री कैलासदांन लालस ने काफी मेहनत से राजस्थानी लोक गाथाओं का विवेचना ही नहीं की बल्कि लोक गाथाओं का तर्कसंगत वर्गीकरण भी किया। इस प्रकार ‘राजस्थानी के प्रमुख कथा गीत’ शीर्षक से निबंध माला राजस्थानी के इतिहास संस्कृति व साहित्य पर शोध के विद्यार्थियों व जन-जन के लिए बहुत ही उपयोगी पुस्तक बनेगी। इसके प्रकाशन से सभी लाभान्वित होंगे।

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