राष्ट्रकूटों (राठौड़ों) का इतिहास : सुप्रसिद्ध इतिहासविद पं. रेउ कृत भारत के प्राचीन राजवंश नामक पुस्तक तथा सरस्वती, रायल एशियाटिक सोयाइटी ऑफ ग्रेट बिटेन एण्ड आयरलैण्ड के जर्नल इण्डियन एण्टिक्वेरी आदि में अपने शोध लेखों के आधार पर स्वयं रेउजी द्वारा लिखित ‘राष्ट्रकूटों (राठौड़ों) का इतिहास’ इस विषय का प्रथम प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है। उनके सबल प्रमाणों द्वारा प्रस्तुत ग्रंथ में रेउजी ने कन्नोज के गहडवालों को राष्ट्रकूटों की ही शाखा सिद्ध किया है तथा गहडवालों को मारवाड के राठौड़ों का पूर्वज माना है। Rashtrakuton Rathoron Ka Itihas
रेउजी द्वारा इस ग्रंथ में प्रतिपादित यह मान्यता देश के विद्धानों के मध्य चर्चित रही कि राष्ट्रकूटों का प्रारम्भिक निवास उत्तरी भारत में ही था और कालान्तर में उन्होंने दक्षिण में अपनी सत्ता स्थापित की। लाट (गुजरात), मान्यखेट (दक्षिण) कन्नोज के गहडवाल तथा र्सौन्दत्ति (बैलगांव जिला) के रट्टों के राजनैतिक इतिहास के साथ ही साहित्य और कला कौशल के विकास का वर्णन इस ग्रंथ की एक प्रमुख विशेषता है। राष्ट्रकूटों के प्रारंभिक इतिहास से राव सींहा के मारवाड़ में प्रवेश तक के ऐतिहासिक घटनाक्रम को सप्रमाण प्रस्तुत करने वाला ‘राष्ट्रकूटों (राठौड़ों) का इतिहास’ पूर्व मध्य युग के इतिहास में रूचि रखने वाले शोधार्थियों के साथ ही मारवाड़ के राठौड़ों के इतिहास के जिज्ञासुओं के लिए सहेज कर रखने योग्य दस्तावेज है। Rashtrakuton Rathoron Ka Itihas (rashtrakuta rathore ka itihas book)
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