मध्य भारत की देशी रियासतों में ब्रिटिश हस्तक्षेप : प्रस्तुत ग्रन्थ में मध्य भारत (सम्प्रति मध्य प्रदेश) के नरेशी राज्यों (देशी रियासतें-Princely States) और सर्वोच्च ब्रिटिश राज सत्ता के राजनीतिक, प्रशासनिक और आर्थिक सम्बन्धों की समीक्षा करने का प्रयास किया गया है। भारत में ब्रिटिश प्रभाव आधिपत्य, सर्वोच्चता और अन्ततः सम्प्रभुता के स्वरूप का निर्धारण मॉर्विस ऑफ हेस्टिंग्स के काल में स्पष्ट हो चुका था। लॉर्ड हेस्टिंग्स की नीति का उल्लेख ‘दि प्राइवेट जनरल ऑफ माविस हेस्टिंग्स’ के पृष्ठ संख्या 30-31 में है (उद्धृत, दि हिस्ट्री एण्ड कल्चर ऑफ दि इण्डियन पीपुल, भाग-1, संपादक, प्रो. आर.सी. मजूमदार, अध्याय 2, पृ. सं. 10, 15-16) जो संक्षेप में इस प्रकार है। उसके अनुसार ब्रिटिश सर्वोच्चता को यथार्थ में स्थापित करना तथा भारतीय राज्यों को दासत्व की स्थिति में पहुँचाना, इस नीति का मुख्य उद्देश्य है। इन राज्यों द्वारा मुगलों के काल में प्राप्त होने वाले स्तर से पृथक् कर इन्हें सामन्तवादी पद्धति में पहुँचाना है जिसके द्वारा भारत में ब्रिटिश आधिपत्य स्थापित हो सके। लॉर्ड हेस्टिंग्स ने अपनी नीति के क्रियान्वयन का परीक्षण किया और उसे दृढ़ता से लागू किया। उसके उत्तराधिकारियों ने उसे तार्किक उपसंहार तक पहुँचाया। ब्रिटिश सर्वोच्चता और क्रामक साम्राज्यवाद की यह नीति बहुत-ही पतली डोर से बंधी हुई थी और ब्रिटिश उद्घोष था- -‘सर्वोच्चता और साम्राज्यवाद । इन्हीं परिपत्रों के पृ. 27 में इसकी और अधिक व्याख्या की गई है कि यद्यपि सन्धियों में नरेशों के आन्तरिक प्रशासन के अधिकार को मान्यता दी गई है। तथापि रियासतों में स्थित रेजीडेण्टों को उसे परिसीमित करने के लिए कहा गया था। उन्हें यह भी कहा गया था कि रेजीडेण्ट राजदूत की तरह काम न करके एक तानाशाह (Dictator) की भाँति काम करें और वे राज्यों के व्यक्तिगत क्षेत्रों में भी हस्तक्षेप करने से न चूकें। यह नीति 1857 के विप्लव के लिए भी किसी-न-किसी रूप में उत्तरदायी रही।
Madhya Bharat Ki Deshi Riyasaton Mein British Hastakshep
मध्य भारत की देशी रियासतों में ब्रिटिश हस्तक्षेप
Author : Sukhveer Singh Bais
Language : Hindi
Edition : 2015
ISBN : 8186103198
Publisher : RAJASTHANI GRANTHAGAR
₹219.00
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