भारतीय लोकतन्त्र दशा एवं दिशा : प्रस्तुत पुस्तक में भारतीय लोकतंत्र की मौजूदा चुनौतियां एवं विकल्प पर गहन चिन्तन प्रस्तुत किया गया है। संवैधानिक मूल्य, आदर्शों एवं मर्यादाओं की वर्तमान दुर्दशा को दूरस्थ करने के व्यापक सुझाव चिन्तकों द्वारा प्रस्तुत किये गये हैं। लोकतंत्र स्वयं में जटिल प्रणाली है। इस जटिल प्रणाली को दिशा देने का प्रयास बहुत कठिन कार्य है। हाल ही के वर्षों में आया आर्थिक भूचाल, लोकतंत्र के लिए नई दिशा तय कर रहा है, विश्व-ग्लोबल विलेज में परिवर्तित हो चुका है। भूमंडलीकृत दुनिया में सम्पत्ति के केंद्रीकरण से उत्तरोत्तर बड़ी संख्या में लोग आर्थिक दृष्टि से समाज के हाशिए पर आ रहे हैं। वहीं राष्ट्रीय स्तर पर आदर्श के सांचे और संस्कार बदल चुके है।
प्रसिद्ध चिन्तक और संविधान सभा के सदस्य सच्चिदान्द सिन्हा का मानना है कि भारतीय लोकतंत्र गाँठों में उलझा लोकतंत्र है। अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान प्रो. लक्ष्मणसिंह राठौड़ का मानना है कि भारतीय लोकतंत्र की दया किट्टन-नॉटिंग तथा स्पाइडर-वैब की तरह है। भारतीय लोकतंत्र वैचारिक तथा व्यावहारिक दोनों मोर्चों पर उलझा दृष्टिगोचर हो रहा है। डॉ. वी.एस. भाटी की स्थापना है कि वस्तुतः भारतीय लोकतंत्र डीर्ट्स-वे (टेढ़ा-मेढ़ा रास्ता) से गुजर रहा है। प्रस्तुत पुस्तक में भारतीय लोकंतत्र के विभिन्न पक्षों एवं दिशाओं की सारगर्भित समीक्षा प्रस्तुत की गई है।
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