श्रापित योद्धा
(ऐतिहासिक राजनैतिक, पुरातनकालीन राजवंश उपन्यास) Shrapit Yoddha
धीर गम्भीर मन्द मेघ गर्जन के समान हौले हौले चान्दनी रात में जैसे समुंद्र की तट से टकराती धीमी लहरों की आवाज में लयबद्ध-क्रमबद्ध आशा से परिपूर्णता से पुरूष द्वारा मन्त्र पाठ का उच्चारण हो रहा था। एवं इसी के पीछे पीछे ही अत्यन्त मधुर कोकिला के स्वर में मानो चांदनी की पूर्णिमा की धवल मोहित करने वाली चांद की सम्पूर्ण कलोधर सोलह कलाओं से वीणा के मध्य झन्कृत करने वाली आवाज में स्त्री के पूर्ण रूपेण प्रकृति की मानो ब्रह्म से मिलन की अनुगामिता में प्राचीन पर्शीयन (खुरासानी) अग्नि पूजक परिसीमाओं की धुन में देवी सूक्त का अनवरत पाठ चल रहा था। Shrapit Yoddha (Historical, Political, and Ancient Dynasty Novel)
नमो देव्यै मदादेव्यै शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्मताम् ||1||
रौद्रायै नमो नित्यायै गौर्यै धात्रयै नमो नमः।
ज्योत्स्नायै चेन्दुरुपिण्यै सुखायै सततं नमः||2||
पुरुष दीर्घकाय आठ हाथ (8 फिट) की लगभग ऊचाँई को प्राप्त अजानबाहू समान भुजाएं जैसी की प्रभु श्री राम की एवं सहस्त्रबाहु व वर्तमान की समयकालिन (समकालिन) समुद्रगुप्त की थी। सिंह जैसी सीधी तनी हुई पीठ पतली कटि मासल वृक्ष सुडौल जंघा ऊँचा ललाट, सिर के घने काले लम्बे कुन्तल (केश), आंखो में एक कुदरती ललाई एवं अनोखा सम्मोहन जो कि किसी को भी सीधे आँखों में देर तक या नजर भर न देखने दें, पैरो के पगतल 14 अगुंल जितनी हथेलिया इतनी चौड़ी की एक छिला हुआ नारियल पूरी मुठ्ठी में बन्द हो जाये, अर्जुन जैसी सव्यसाची भुजायें और पैरों की पिंडलिया मछली के आकार की रंग धूप में तथा गौर वर्ण तपे ताम्बे जैसा था। एक पीत वर्ण धोती पहनी हुई कान्धे पर जनेऊ धारण किये सिन्दूरी तिलक धारण किये था। Shrapit Yoddha (Aitihasik Rajnaitik, Puratankaleen Rajvansh Upanyas)
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